एक ही मंडप में बेटे-बहू संग 65 साल के बुजुर्ग ने भी 40 साल की महिला से रचाई शादी

झारखण्ड रांची
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रांची,18 फरवरी (ए)। बसंत पंचमी का शुभ दिन झारखंड में रहने वाले सैकड़ों अविवाहित लोगों की जिंदगी में हवा के झोंके की तरह आया और उन पर खुशियों की बौछार कर गया। बसिया के सरना मैदान में ऐसे 55 जोड़ों का विवाह हुआ, जो गरीबी और अन्य सामाजिक परंपराओं के कारण सालों से साथ रह रहे हैं, लेकिन इनकी औपचारिक शादी नहीं हुई और पति-पत्नी नहीं बन सके। इनके बेटे-बेटियां हैं, पोते-पोतियां हैं, लेकिन वैवाहिक बंधन में नहीं बंधे हुए है। गुमला के सामूहिक विवाह मंडप में ऐसी ही शादियों को वर्षों बाद मान्यता दिलाने की कोशिश प्रसिद्ध स्वयंसेवी संस्था निमित्त ने की। संस्था की सचिव निकिता ने बताया कि झारखंड के गांवों में हज़ारों जोड़े रहते है जिनकी औपचारिक शादी नहीं हुई है। खराब आर्थिक स्थ‍ित‍ि की वजह से ये शादी का खर्च नहीं उठा पाते। झारखंड के कई इलाकों में मान्यता है कि जब तक शादीशुदा जोड़ा समाज के लोगों को भोज नहीं देता, उसकी शादी को स्वीकार्यता नहीं मिलती और इसी कारण समाज ऐसी शादियों को नहीं मानता। जीवनभर इन जोड़ों को परेशानियां उठानी पड़ती हैं। सबसे ज्यादा नुकसान महिलाओं और बच्चों को होता है। उन्हें किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल पाता है। पुरूष की मृत्यु पर उसके बच्चों और बीवी का सम्पत्ति में कोई अधिकार नहीं होता। बच्चों के कान नहीं छेदे जाते, महिलाओं की असामयिक मृत्यु पर उन्हें सामूहिक कब्रगाह में स्थान नहीं मिलता। पत्नी के रूप में रह रही महिलाओं को ढुकनी (मतलब जबरन घर में घुस आई) कहा जाता है और पति को ढुकू (घर में घुसाने वाला) कहा जाता है। इस सामूहिक विवाह से कई लोगों के घर में खुशियां आयी। इस विवाह में बाप- बेटे ने साथ में विवाह किया तो कहीं कोई अपने नाती-पोतों को गोद में लेकर फेरे ले रहा था। सबसे उम्रदराज 62 वर्षीय पाको झोरा और 56 साल की पत्नी सोमारी देवी ने बताया कि वे 40 साल से लिव-इन में रह रहे हैं। पुत्र जितेंद्र ने कहा कि माता-पिता ने शादी नहीं की तो वो भी शादी से वंचित रह गया। लेकिन इस मंडप में माता-पिता और बेटे-बहू दोनों परिणय सूत्र में बंधे। आंख से दिव्यांग बिनु मुंडा और सुकृता कुमारी की इस शादी से जिंदगी में रोशनी लौट आयी। उन्होंने कहा कि शादी करना एक सपना था, जो पूरा हुआ है। संस्था की ओर से कराई शादी में विभिन्न धर्म के लोग एक हुए। हिन्दू जोड़े का विवाह पंडित बद्रीनाथ ने, ईसाई जोड़े का विवाह पादरी अनिल ने, सरना जोड़े का व‍िवाह जतरू भगत व चन्द्रमनि देवी द्वारा कराया गया।