गांधीनगर: छह फरवरी (ए) कांग्रेस ने मंगलवार को आरोप लगाया कि गुजरात सरकार ने दो साल में बिजली खरीद शुल्क के लिए अडाणी पावर को 8,200 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भुगतान किया, जो “पक्षपात” है। हालांकि ऊर्जा मंत्री ने इस दावे को खारिज कर दिया और कोयला खरीद लागत में वृद्धि का हवाला दिया।
कांग्रेस ने मांग की कि सरकार कंपनी से 8,265 करोड़ रुपये वसूल करे और इसका निवेश राज्य की ऊर्जा इकाइयों की क्षमता बढ़ाने में करे।बजट सत्र के दौरान विधानसभा में प्रश्नकाल में कांग्रेस विधायक तुषार चौधरी ने जानना चाहा कि सरकार ने 2022 से 2023 के बीच अडाणी पावर लिमिटेड से किस दर पर बिजली खरीदी।
ऊर्जा मंत्री कनुभाई देसाई ने अपने जवाब में कहा कि बिजली ‘मेरिट ऑर्डर’ प्रणाली के अनुसार खरीदी जाती है, जिसे पूर्ववर्ती कांग्रेस नीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने शुरू किया था।
देसाई ने लिखित उत्तर में कहा, ‘‘राज्य सरकार ने 2007 में बोली-1 के तहत 2.89 रुपये प्रति यूनिट और बोली-2 के तहत 2.35 रुपये प्रति यूनिट पर 25 वर्षों के लिए बिजली खरीदने की खातिर अडाणी पावर के साथ समझौता किया था। ऐसे बिजली खरीद समझौते दो अन्य निजी कंपनियों – टाटा पावर और एस्सार पावर के साथ भी किए गए थे।’
मंत्री ने कहा कि चूंकि ये ऊर्जा कंपनियां इंडोनेशिया से आयातित कोयले पर निर्भर थीं, इसलिए 2021 के बाद कोयले की कीमतें तेजी से बढ़ने के बाद वे मुसीबत में पड़ गयीं और अपने संयंत्र बंद कर दिए। मंत्री ने कहा कि कोयला खरीद लागत में वृद्धि को समायोजित करने के लिए 2018 और 2022 में संशोधित समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे।
जवाब से नाखुश, कांग्रेस विधायक अमित चावडा ने कहा कि 2007 में 25 वर्षों के लिए 2.62 रुपये प्रति यूनिट के औसत ऊर्जा शुल्क पर सहमति बनी थी, इसके विपरीत, राज्य सरकार ने 2022 में 7.18 रुपये प्रति यूनिट और 2023 में 5.33 रुपये प्रति यूनिट का औसत शुल्क भुगतान किया।
चावड़ा ने सवाल किया, ‘‘समझौते के बावजूद, सरकार ने अडाणी पावर को 8,265 करोड़ रुपये अधिक का भुगतान किया। हम चिंतित हैं क्योंकि करदाताओं का पैसा अडाणी को भुगतान किया गया। 25 साल पूरे होने में अभी भी आठ साल बाकी हैं। तो, क्या आप अपने फैसले की समीक्षा करने और अडाणी के साथ नए समझौते पर हस्ताक्षर करने की योजना बना रहे हैं?’
उन्होंने यह भी मांग की कि सरकार अडाणी से ‘अतिरिक्त 8,265 करोड़ रुपये’ वसूल करे।
देसाई ने कहा कि अडाणी को कोई तरजीह नहीं दी गई क्योंकि गुजरात बिजली नियामक आयोग के आदेश के अनुसार अन्य निजी कंपनियों से भी बिजली खरीदी गई। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली तब शुरू की गई थी जब कांग्रेस सत्ता में थी।
जब भाजपा के कुछ विधायकों ने कांग्रेस पर अडाणी को अनावश्यक रूप से परेशान करने का आरोप लगाया, तो चावडा ने कहा कि उनकी पार्टी चिंतित है क्योंकि इसमें करदाताओं का पैसा शामिल है।चावड़ा ने पूछा, ‘पिछले दो वर्षों के दौरान, अडाणी को भुगतान किया गया ऊर्जा शुल्क अतीत में बनी सहमति से अधिक था। आप कह रहे हैं कि दरें संशोधित की गईं क्योंकि कोयला महंगा हो गया था। लेकिन आज, अडाणी के पास ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में कोयला खदानें हैं और उसे सस्ती दरों पर कोयला मिल सकता है। तो अब अडाणी को सस्ती बिजली देने से कौन रोक रहा है?’
कांग्रेस के एक अन्य विधायक शैलेश परमार ने सवाल किया कि राज्य की स्थापित क्षमता पिछले कुछ वर्षों में बढ़ने के बावजूद राज्य के स्वामित्व वाली इकाइयां पर्याप्त बिजली का उत्पादन क्यों नहीं कर पा रही हैं।
देसाई ने जवाब देते हुए कहा कि बिजली निजी कंपनियों और अन्य स्रोतों से खरीदी जाती है क्योंकि राज्य के स्वामित्व वाली इकाइयों की दक्षता, पुरानी होने के चलते अन्य की तुलना में कम हो जाती है।
उन्होंने सदन को आश्वासन दिया कि सरकार भविष्य में कोयले का उपयोग करके बिजली का उत्पादन पूरी तरह से बंद करने और धीरे-धीरे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने की योजना बना रही है।
देसाई ने कहा, ‘15,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करने के लिए सौर और पवन ऊर्जा कंपनियों के साथ हाल ही में किए गए समझौते के अनुसार, राज्य सरकार 3 रुपये प्रति यूनिट बिजली खरीद सकेगी।’
प्रश्नकाल के बाद, कांग्रेस विधायकों ने गुजरात और केंद्र की भाजपा सरकारों पर अडाणी को तरजीह देने का आरोप लगाते हुए विधानसभा परिसर के परिसर में प्रदर्शन किया।
बाद में पत्रकारों से बात करते हुए, देसाई ने कहा कि आयातित कोयले की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि के कारण अडाणी और अन्य निजी कंपनियों के लिए दरों में बढ़ोतरी की गई थी।
मंत्री ने कहा, ‘‘2018 तक, इन तीन कंपनियों से खरीदी गई बिजली हमारी कुल खरीद का 30 प्रतिशत थी। कोयले की कीमतें बढ़ने के बाद, इन तीनों कंपनियों की हिस्सेदारी घटकर 17 प्रतिशत हो गई। इसके अलावा, अडाणी की हिस्सेदारी 2022 और 2023 में क्रमशः 5 एवं 6 प्रतिशत थी।’’