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न्यायालय का काला धन जब्त करने के लिये कानून बनाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई से इंकार

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नयी दिल्ली, 11 दिसंबर (ए) उच्चतम न्यायालय ने ‘बेनामी’ संपत्ति, बेहिसाबी संपत्ति और काला धन जब्त करने का कानून बनाने की संभावना तलाशने का केन्द्र को निर्देश देने के लिये दायर जनहित याचिका पर शुक्रवार को विचार करने से इंकार कर दिया और कहा कि न्यायपालिका से विधायिका और कार्यपालिका की भूमिका निभाने के लिये नहीं कहा जा सकता।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेष रॉय की पीठ ने हालांकि याचिकाकर्ता भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय को इस बारे में विधि आयोग को प्रतिवेदन देने की अनुमति दे दी। प्रतिवेदन में विधि आयोग से वर्तमान कानूनों में संशोधन करने या कानून बनाकर रिश्वत और काला धन अर्जित करने के अपराध में उम्र कैद की सजा का प्रावधान करने की संभावना तलाशने का अनुरोध किया जा सकता है।

वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा, ‘‘मुझे आपसे दो बातें कहनीं हैं। विधायिका है और कार्यपालिका काम करती है और इसकी निगरानी के लिये न्यायपालिका है। आय न्यायपालिका से यह नहीं कह सकते कि वह सारी भूमिकायें अपने हाथ में ले लें। संविधान में भी इसकी परिकल्पना नहीं की गयी है।’’

पीठ ने जनहित के मामले में याचिका दायर करने के उपाध्याय के अच्छे काम की सराहना की और यह भी कहा कि यह अब ‘पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटीगेशन’ बनता जा रहा है।

पीठ ने कहा, ‘‘ खेद है, यह पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटीगेशन बन रहा है। याचिकाकर्ता ने कुछ अच्छे काम भी किये हैं लेकिन इस पर हम विचार नहीं कर सकते।’’

सुनवाई शुरू होते ही उपाध्याय की ओर से शंकरनारायणन ने काला धन और बेनामी संपत्ति के मुद्दों का जिक्र किया और कहा कि स्वर्गीय राम जेठमलानी ने भी कुछ साल पहले शीर्ष अदालत में इसी तरह के मुद्दे उठाये थे।

उन्होंने कहा, ‘‘पूरी तरह से इच्छा शक्ति का अभाव है। कोयला आबंटन घोटाला एक लाख करोड़ रूपए से ज्यादा का था, लेकिन तीन साल की सजा दी गयी।’’

पीठ ने कहा, ‘‘कानून बनाना संसद का काम है। हम संसद को कानून बनाने के लिये परमादेश नहीं जारी कर सकते ।’’ पीठ ने कहा कि यचिकाकर्ता को जन प्रतिनिधियों को इस बारे में कानून बनाने के लिये तैयार करना चाहिए।

पीठ ने उपाध्याय को यह जनहित याचिका वापस लेने और विधि आयोग के यहां प्रतिवेदन देने की अनुमति दे दी।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पीठ ने समाज में सोचने के तरीके मे बदलाव पर जोर दिया और कहा , ‘‘पैसा लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिये पैसा बांटने वाला भी एक व्यक्ति है।’’

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