बेंगलुरु, 25 नवंबर (ए) प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि व्यक्ति की ‘पहचान एवं सरकार द्वारा इसे दी गई मान्यता’ लोगों को मिलने वाले संसाधनों तथा शिकायतें करने व अपने अधिकारों की मांग करने की उनकी क्षमताओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 36वें ‘द लॉ एसोसिएशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक’ (एलएडब्ल्यूएएसआईए) सम्मेलन के पूर्ण सत्र को डिजिटल माध्यम से संबोधित करते हुए ‘‘पहचान, व्यक्ति और सरकार- स्वतंत्रता के नए रास्ते’’ विषय पर बात की।.एलएडब्ल्यूएएसआईए, वकीलों, न्यायाधीशों, न्यायविदों और कानूनी संगठनों का एक क्षेत्रीय संगठन है।
प्रधान न्यायाधीश ने इस बारे में भी बात की कि डिजिटल युग में ‘‘हम कृत्रिम मेधा के कई पहलुओं का सामना कर रहे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘एआई और व्यक्तित्व के बीच एक जटिल परस्पर संबंध है, जहां हम खुद को अज्ञात क्षेत्रों से गुजरते हुए पाते हैं, जो दार्शनिक और व्यावहारिक विचार, दोनों की मांग करते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘एआई और व्यक्तित्व के बीच संबंध पर विचार करते समय हमें इन प्रौद्योगिकियों के उपयोग से संबंधित नैतिकता के मौलिक प्रश्नों का सामना करना पड़ता है…।’
प्रधान न्यायाधीश ने एक मानव-रोबोट (सोफिया) का उदाहरण दिया, जिसे (सऊदी अरब में) नागरिकता प्रदान की गई थी। उन्होंने कहा,’हमें इस पर विचार करना चाहिए कि क्या सभी जीवित मनुष्य जो सांस लेते हैं और चलते-फिरते हैं, वे अपनी पहचान के आधार पर व्यक्तित्व और नागरिकता के हकदार हैं।’
जाति प्रथा के बारे में बात करते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जाति द्वारा समकालीन सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालना जारी है। इसका लचीलापन सामाजिक स्तरीकरण, आर्थिक असमानताओं और विभिन्न जाति समूहों को अवसर उपलब्ध होने के रूप में स्पष्ट है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि क्षेत्र में जाति की स्थिति धार्मिक संबद्धताओं से आकार नहीं लेती है। उन्होंने कहा, जटिल जाति व्यवस्था न केवल ऐतिहासिक असमानता की प्रतिक्रिया है, बल्कि स्थापित सामाजिक संरचनाओं को बाधित करने के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में कार्य करती है।
न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट सहित विभिन्न रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि यह व्यापक दुर्व्यवहार की ओर ध्यान आकर्षित करता है, जिसका सामना हाशिए पर मौजूद लोगों के अलावा अस्पृश्यता, शिक्षा तक सीमित पहुंच और कम प्रतिनिधित्व वाले लोग करते हैं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि ये निष्कर्ष इस जटिल क्षेत्र में गहरी जड़े जमाये भेदभाव को दूर करने के लिए सकारात्मक कार्रवाई की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करते हैं। उन्होंने कहा कि सकारात्मक कार्रवाई स्थापित व्यवस्था को चुनौती देने वाली एक परिवर्तनकारी शक्ति बन जाती है। उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक के रूप में कार्य करती है।प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि आजादी स्वयं के लिए निर्णय लेने और अपने जीवन की दिशा बदलने की शक्ति देती है।
उन्होंने कहा, ‘‘जबकि सरकार और स्वतंत्रता के बीच संबंध को व्यापक रूप से समझा गया है, लेकिन पहचान और स्वतंत्रता के बीच संबंध स्थापित करने और समझाने का कार्य अभी अधूरा है।’’
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि स्वतंत्रता को परंपरागत रूप से किसी व्यक्ति के चयन करने के अधिकार में सरकार का हस्तक्षेप नहीं करने के तौर पर समझा जाता है, लेकिन समकालीन विद्वान इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि सामाजिक पूर्वाग्रहों और पदानुक्रमों को बनाए रखने में सरकार की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में, चाहे सरकार हस्तक्षेप न करे, लेकिन वह सामाजिक और आर्थिक रूप से मजबूत समुदायों को उन समुदायों पर प्रभुत्व स्थापित करने की स्वत: अनुमति दे देती है जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे हैं।’’
प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि जो लोग अपनी जाति, नस्ल, धर्म या लिंग के कारण हाशिए पर हैं, उन्हें पारंपरिक, उदारवादी व्यवस्था में हमेशा उत्पीड़न का सामना करना पड़ेगा और यह सामाजिक रूप से प्रभुत्वशाली लोगों को सशक्त बनाता है।