नयी दिल्ली: 24 सितंबर (ए) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि उच्च न्यायालय को किसी मामले की जांच का जिम्मा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने का अधिकार है, लेकिन उसे इस बात का तार्किक आधार भी देना होगा कि उसे ऐसा क्यों लगता है कि संबंधित राज्य पुलिस द्वारा मामले की जांच निष्पक्ष नहीं है।
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए की, जिसमें सीबीआई को गोरखा प्रादेशिक प्रशासन (जीटीए) में स्वैच्छिक शिक्षकों की भर्ती और नियमितीकरण से संबंधित एक मामले को लेकर कुछ पत्रों में लगाए गए आरोपों की प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया गया था।न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश के अवलोकन से पता चलता है कि इस बारे में एक भी शब्द नहीं कहा गया कि उच्च न्यायालय को राज्य सरकार द्वारा कराई गई जांच अनुचित क्यों लगी।
पीठ ने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि उच्च न्यायालय, भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए जांच सीबीआई को सौंपने के लिए सशक्त है।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘हालांकि, ऐसा करने के लिए उसे इस बात पर विचार करना होगा कि उसे ऐसा क्यों लगता है कि राज्य पुलिस द्वारा की गई जांच निष्पक्ष नहीं है या पक्षपातपूर्ण है।’’
पीठ ने कहा कि केवल कुछ पत्रों के आधार पर इस तरह की कवायद उचित नहीं है।
शीर्ष अदालत पश्चिम बंगाल सरकार की उस याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें जलपाईगुड़ी में उच्च न्यायालय की सर्किट बेंच की एक खंडपीठ द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी।
खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश के अमल पर रोक लगाने वाला अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था।
एकल न्यायाधीश ने सीबीआई को पत्रों में लगाए गए आरोपों की प्रारंभिक जांच या विश्लेषण करने तथा कथित आरोपों के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान कहा कि इस मुद्दे पर कानून पूरी तरह से स्थापित है।
उसने कहा कि उच्च न्यायालयों को सीबीआई को किसी मामले की जांच करने का निर्देश देने का अधिकार है, लेकिन उन्हें इसके लिए तर्क देना होगा।
खंडपीठ ने कहा, ‘‘याचिका स्वीकार की जाती है। आक्षेपित आदेश निरस्त किए जाते हैं।’’
न्यायालय ने उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश को लंबित याचिका पर कानून के अनुसार निर्णय लेने को कहा।