वाराणसी (उप्र), 23 मई (ए) वाराणसी की एक जिला अदालत ने ज्ञानवापी मामले से संबंधित एक ही प्रकृति के सात मुकदमों की सुनवाई एक साथ किये जाने का आदेश दिया है।.
ज्ञानवापी और आदि विश्वेश्वर मामलों के विशेष अधिवक्ता राजेश मिश्रा ने बताया कि जिला न्यायाधीश ए के विश्वेश ने प्रतिवादियों की आपत्ति के बावजूद अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए ज्ञानवापी प्रकरण से संबंधित एक ही प्रकृति के सात मुकदमों की सुनवाई एक साथ करने का आदेश सुनाया है।.मिश्रा ने बताया कि जिला न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा है कि यदि ये सभी मामले विभिन्न अदालतों में लंबित रहेंगे, तो सम्भावना है कि इनमें विरोधाभासी आदेश सुनाए जा सकते हैं, जबकि एक ही अदालत में ऐसे सभी मामलों की सुनवाई होने से विरोधाभासी फैसले की कोई सम्भावना नहीं रहेगी।
मिश्रा के अनुसार, जिला न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा है कि दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश (ऑर्डर) चार-ए में प्रावधान किया गया है कि जब एक ही अदालत में दो या दो से अधिक वाद लंबित हों और अदालत की राय में यदि संयुक्त सुनवाई न्याय के हित में है, तो न्यायाधीश इसका आदेश दे सकता है। जिला न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा है कि यह न्याय के हित में होगा कि इन सभी मुकदमों को एक साथ सुना जाए।
मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता मोहमद तौहीद खान ने सभी सातों मुकदमों की एक साथ सुनवाई किये जाने के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि अभी ज्ञानवापी से जुड़े मुद्दे उस अवस्था में नहीं पहुंचे थे कि उनको एक साथ सुनने का फैसला दिया जाये। उन्होंने कहा कि अभी अदालत को सभी मुकदमों के साक्ष्यों को देखना चाहिए था और यदि साक्ष्य एक जैसे रहते तब इस तरह का फैसला देना न्यायसंगत होता।
गौरतलब है कि अगस्त 2021 में पांच महिलाओं ने स्थानीय अदालत में एक याचिका दायर की थी, जिसमें मस्जिद परिसर के अंदर स्थित मां शृंगार गौरी स्थल पर नियमित पूजा के अधिकार की मांग की गई थी। इसपर सुनवाई करते हुए जिला न्यायाधीश ने सातों मुकदमों को एक ही प्रकृति का बताते हुए एक साथ सुनवाई किये जाने का आदेश दिया है।
विदित हो कि अप्रैल 2022 में दीवानी न्यायाधीश (सीनियर डिवीजन) की अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण का आदेश दिया था। मुस्लिम पक्ष के विरोध के बीच सर्वेक्षण अंततः मई 2022 में पूरा हुआ था। इसी दौरान हिंदू पक्ष ने मस्जिद परिसर के अंदर वजू के लिए बने तालाब में ‘शिवलिंग’ मिलने का दावा किया था, वहीं मुस्लिम पक्ष ने इसे फव्वारा बताया था। बाद में इसमें कई मामले अदालत में दाखिल किये गये।