Site icon Asian News Service

न्यायालय ने नए निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति में अपनाई गई प्रक्रिया पर केंद्र से सवाल किए

Spread the love

नयी दिल्ली: 21 मार्च (ए) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए अपनाई गई प्रक्रिया पर केंद्र से सवाल किया और पूछा कि कुछ ही घंटों में 200 में से छह नाम कैसे ‘शॉर्टलिस्ट’ कर लिए गए।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि चयन समिति को निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर विचार करने के लिए और समय दिया जाना चाहिए था।पीठ ने केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, “एक रिक्ति के लिए पांच नाम थे। दो के लिए आपने छह नाम भेजें। 10 क्यों नहीं? यह क़ानून की भाषा है – एक रिक्ति के लिए पांच नामों की अनुशंसा करनी होती है। रिकॉर्ड से ऐसा प्रतीत होता है।”

उसने कहा, “वे (चयन समिति) 200 नामों पर विचार कर सकते हैं, लेकिन कितना समय दिया गया है, शायद दो घंटे? दो घंटे में दो सौ नामों पर विचार? आप पारदर्शी हो सकते थे।”

मेहता ने बताया कि दो नए निर्वाचन आयुक्त एक चयन समिति द्वारा सुझाए गए 200 नामों में से चुने गए छह नामों में से थे।

न्यायमूर्ति दत्ता ने मेहता से कहा, “न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए। हम जन प्रतिनिधित्व अधिनियम से निपट रहे हैं, जो मेरे अनुसार संविधान के बाद सर्वोच्च है। जनता के भौहें चढ़ाने की कोई गुंजाइश क्यों छोड़ें।”

न्यायमूर्ति दत्ता ने मेहता से प्रक्रिया को 15 मार्च से पहले कर 14 मार्च करने के पीछे के कारण के बारे में भी सवाल किया।

न्यायमूर्ति दत्ता ने पूछा, “एक (निर्वाचन आयुक्त) को चुनने के लिए आप 15 तारीख को रखते हैं और दो को चुनने के लिए आपने बैठक को 14 तारीख तक आगे बढ़ा दिया है? क्यों?”

मेहता ने जवाब दिया कि चयन समिति के सदस्यों को उन छह अधिकारियों के बारे में पता था, जो राजनीतिक दलों से परे पद पर थे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह नियुक्त निर्वाचन आयुक्तों की साख पर नहीं बल्कि प्रक्रिया पर सवाल उठा रही है।

पीठ ने हालांकि नए निर्वाचन आयुक्तों ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू की नियुक्ति पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और कहा कि ऐसा करने से “अराजकता और अनिश्चितता” पैदा होगी क्योंकि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं।

Exit mobile version