बाल विवाह बच्चों को स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के अवसरों से वंचित करता है: उच्चतम न्यायालय

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली: 18 अक्टूबर (ए) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि बाल विवाह के कारण स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और जीवन के अवसरों से वंचित होना समानता, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक सिद्धांतों का अपमान है।

शीर्ष अदालत ने बाल विवाह की “सामाजिक बुराई” के प्रचलन को “चिंताजनक” बताया और इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए केंद्र, राज्यों, जिला प्रशासन, पंचायतों और न्यायपालिका को कई निर्देश दिए।पीठ के लिए फैसला लिखते हुए प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बाल विवाह संविधान के अनुच्छेद 21 में दिए गए जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है।

पीठ ने कहा, ‘‘नाबालिगों के रूप में विवाहित सभी बच्चों को उनकी पसंद और स्वायत्तता, शिक्षा के अधिकार, लैंगिक अधिकार और बच्चे के विकास के अधिकार से वंचित किया जाता है। जिन लड़कियों की शादी बचपन में ही कर दी जाती है, उन्हें उनके स्वास्थ्य के अधिकार से भी वंचित किया जाता है।’’

इस तरह की शादियों से नाबालिगों के कई मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का फैसले में उल्लेख किया गया और कहा गया कि जिन बच्चों को जबरन विवाह बंधन में बांधा जाता है, उन्हें उनके विकास के अधिकार से वंचित किया जाता है।

फैसले में इस बात का भी उल्लेख किया गया कि संविधान लागू होने के करीब 74 साल बाद भी बाल विवाह समाज, सामाजिक प्रगति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए निरंतर खतरा बना हुआ है।

इसने अपनी पसंद और स्वायत्तता के अधिकार का उल्लेख करते हुए कहा कि जबरन विवाह का मुद्दा बाल विवाह से जटिल रूप से जुड़ा हुआ है, क्योंकि दोनों प्रथाएं व्यक्तियों, विशेष रूप से नाबालिगों को उनके जीवन के बारे में स्वायत्त निर्णय लेने के मौलिक अधिकार से वंचित करती हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘एजेंसी की यह कमी बाल विवाह के संदर्भ में वहां बढ़ जाती है, जहां बच्चों पर सामाजिक और पारिवारिक दबाव डाला जाता है, जो सहमति देने की उनकी क्षमता को कमजोर करता है।’’

शीर्ष अदालत के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय कानून ने विभिन्न मुद्दों से निपटने के लिए अधिकार-आधारित रूपरेखा विकसित की है और बाल विवाह एक बुराई है, जिसके खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने अधिकारों की मान्यता के माध्यम से अपनी प्रतिबद्धता दर्शाई है।

जब बाल विवाह के खिलाफ संवैधानिक गारंटी का मसला आया, तो पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अपनी पसंद और स्वायत्तता के अधिकार, बच्चे की शिक्षा और विकास के साथ-साथ उनके सभी पहलुओं को शीर्ष अदालत के न्यायशास्त्र और भारत के कई कानूनों में ‘दृढ़ता से मान्यता प्राप्त’ है।

फैसले में कहा गया है कि जिन लड़कियों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है, उन्हें न केवल उनके बचपन से वंचित किया जाता है, बल्कि उन्हें पैतृक पक्ष, दोस्तों और अन्य सहायता प्रणालियों से अलग होने के कारण सामाजिक अलगाव में भी रहने के लिए मजबूर किया जाता है।