दिल्ली, 31 अगस्त (ए) केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने बुधवार को कहा कि भारत वैश्विक उत्सर्जन के लिए पारंपरिक रूप से जिम्मेदार नहीं होने के बावजूद समस्या का समाधान करने का इरादा दिखा रहा है।
यादव ने पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन के मामलों पर चर्चा के लिए इंडोनेशिया के बाली में जी20 देशों की मंत्री स्तरीय बैठक में कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय मदद का वादा एक मृगतृष्णा बना हुआ है और इसकी मौजूदा गति एवं पैमाना वैश्विक महत्वाकांक्षा से मेल नहीं खाता।
उन्होंने कहा कि शुद्ध-शून्य उत्सर्जन की ओर बढ़ने की प्राथमिक जिम्मेदारी उन देशों की है, जो वातावरण में संचित ग्रीनहाउस गैस सांद्रता के लिए ऐतिहासिक रूप से सर्वाधिक जिम्मेदार हैं।
शुद्ध शून्य का अर्थ है- वातावरण में डाली गई ग्रीनहाउस गैस और इससे निकाली गई गैस के बीच संतुलन बैठाना।
उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि भारत वैश्विक उत्सर्जन के लिए पारंपरिक रूप से जिम्मेदार नहीं रहा है, फिर भी हम अपने कार्यों से समस्या सुलझाने का इरादा दिखा रहे हैं।’’
मंत्री ने कहा कि भारत एक बहु-आयामी दृष्टिकोण के जरिए निम्न कार्बन उत्सर्जन करने वाले उद्योग स्थापित करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
उन्होंने कहा कि भारत ने सभी मकानों में बिजली उपलब्ध कराने और खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा तक तेजी से पहुंच बढ़ाने जैसे कदमों से हालिया वर्षों में उल्लेखनीय प्रगति की है तथा भारत नवीकरणीय ऊर्जा के दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से एक है।
यादव ने कहा कि देश का राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन उन क्षेत्रों से उत्सर्जन को कम करने के लिए अहम साबित होगा, जिनमें इसे कम करना कठिन कार्य है।
उन्होंने कहा, ‘‘इन सभी प्रयासों के लिए कम लागत पर निवेश की आवश्यकता है और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्तीय मदद को 2019 के स्तर से 2025 तक दोगुना करने की खातिर नवोन्मेषी मॉडल की आवश्यकता है। इसके अलवा कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली प्रौद्योगिकियां विकसित एवं इस्तेमाल करने के लिए नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है।’’
यादव ने कहा कि जलवायु परिर्वतन का सर्वाधिक असर उन गरीब एवं कमजोर देशों पर पड़ रहा है, जो जलवायु संकट के लिए सबसे कम जिम्मेदार हैं और जिनके पास यथास्थिति को महत्वपूर्ण रूप से बदलने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी, क्षमता और वित्त का अभाव है।
उन्होंने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वित्त मुहैया कराने का वादा मृगतृष्णा बना हुआ है। इसके अलावा विकास के लिए वित्त को जलवायु परिवर्तन के लिए मुहैया कराए जाने वाले वित्त के साथ जोड़ने से समस्या बढ़ गई है।’’
मंत्री ने कहा कि 2019 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दिया गया सार्वजनिक धन अनुदान के बजाय ऋण के रूप में दिया गया। उन्होंने कहा कि 2019-20 में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए केवल छह प्रतिशत राशि अनुदान के रूप में दी गई और इससे विकासशील देश और अधिक कर्ज में डूबते जा रहे हैं।
यादव ने कहा, ‘‘अर्थव्यवस्था को इस तरह से प्रोत्साहित करने के लिए संसाधन जुटाने की तत्काल आवश्यकता है, जिससे यह अधिक लचीली और सतत बन सके, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए विकसित देशों से मिल रही वित्तीय मदद की मौजूदा गति एवं पैमाना वैश्विक महत्वाकांक्षा से मेल नहीं खाता है।’’
मंत्री ने कहा कि दुनिया को यह समझना चाहिए कि विकास और पर्यावरण संरक्षण को एक-दूसरे से अलग देखने के बजाय उन्हें एक साथ देखने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘दूसरा, हमें राष्ट्रीय परिस्थितियों और साझा, किंतु अलग-अलग जिम्मेदारियों एवं संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांत पर विचार करते हुए, आर्थिक विकास को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से अलग करना चाहिए।’’
सीबीडीआर-आरसी जलवायु परिवर्तन से निपटने में अलग-अलग देशों की भिन्न- भिन्न क्षमताओं और भिन्न-भिन्न जिम्मेदारियों की बात करता है।
उन्होंने कहा कि जी20 सदस्यों को महासागरों के प्रति विशेष जिम्मेदारी निभानी चाहिए, क्योंकि वे सभी तटीय देश हैं और दुनिया के 45 प्रतिशत समुद्र तटों और 21 प्रतिशत से अधिक विशेष आर्थिक क्षेत्रों के लिए संचयी रूप से जिम्मेदार हैं।
अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, कोरिया गणराज्य, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपीय संघ जी-20 के सदस्य हैं।