भ्रष्टाचार मामला: येदियुरप्पा की याचिका पर न्यायालय ने बड़ी पीठ को भेजा मामला

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली: 21 अप्रैल (ए)।) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को भाजपा नेता बी एस येदियुरप्पा की याचिका से उत्पन्न कानूनी मुद्दों को बड़ी पीठ के पास भेज दिया। इसमें यह सवाल भी शामिल है कि मजिस्ट्रेट अदालत के जांच के आदेश के बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की आवश्यकता है या नहीं।

न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने 4 अप्रैल को येदियुरप्पा की याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के एक मामले को फिर से शुरू करने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी।

हालांकि, न्यायमूर्ति पारदीवाला ने सोमवार को कहा कि जब पीठ ने फैसला लिखना शुरू किया तो उन्हें 16 अप्रैल, 2024 का एक आदेश मिला, जिसमें एक अन्य पीठ ने एक अलग मामले में इसी तरह के सवालों को एक बड़ी पीठ को भेजने का आदेश दिया था।

उन्होंने ‘‘न्यायिक मर्यादा’’ के सिद्धांत का उल्लेख किया और कहा कि केवल इसी पहलू पर येदियुरप्पा की याचिका को बड़ी पीठ गठित करने के लिए प्रधान न्यायाधीश के पास भेजा जा रहा है।

शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हम इन याचिकाओं को संदर्भित मामले मंजू सुराणा बनाम सुनील अरोड़ा से जोड़ना उचित समझते हैं। रजिस्ट्री को इन मामलों को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखने का निर्देश दिया जाता है।’’

पीठ ने स्पष्ट किया कि यह संदर्भ केवल औचित्य के आधार पर है तथा उसने वृहद पीठ के समक्ष निर्णय के लिए सात प्रश्न सूचीबद्ध किए।

उच्च न्यायालय ने 5 जनवरी, 2021 को बेंगलुरु के ए आलम पाशा की याचिका को स्वीकार कर लिया और येदियुरप्पा, पूर्व उद्योग मंत्री मुरुगेश आर निरानी तथा कर्नाटक उद्योग मित्र के पूर्व प्रबंध निदेशक शिवस्वामी केएस के खिलाफ उनकी शिकायत पर कार्यवाही फिर से शुरू कर दी।

पाशा ने येदियुरप्पा, निरानी और शिवस्वामी केएस के खिलाफ भ्रष्टाचार एवं आपराधिक साजिश के आरोप लगाए हैं।

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन के लिए पूर्व अनुमति न होने के कारण पहले की शिकायत रद्द हो जाती है, लेकिन इससे आरोपी के पद छोड़ने के बाद नयी शिकायत दर्ज करने पर रोक नहीं लगती। हालांकि, इसने मामले में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और राज्य सरकार के पूर्व प्रधान सचिव वी पी बलिगर के खिलाफ अभियोजन चलाने की अनुमति नहीं दी।

मामले की सुनवाई के बाद शीर्ष अदालत ने निर्णय के लिए प्रश्न तैयार किए, जिनमें यह भी शामिल है कि क्या न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 156(3) के तहत जांच का आदेश दिए जाने के बाद भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 17ए के तहत उपयुक्त अधिकारियों की पूर्व मंजूरी की आवश्यकता होगी?