नयी दिल्ली: 17 अप्रैल (ए) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि किसी मामले में मकसद के अभाव को आरोपी को बरी करने का एकमात्र आधार नहीं माना जा सकता। न्यायालय ने 2012 में अपने बेटे की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखते हुए यह बात कही।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने पिता द्वारा अपने इकलौते बेटे की हत्या की असंभावना के बारे में व्यक्ति की जोरदार दलील को ‘बचकाना’ बताते हुए खारिज कर दिया।शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता की एक और दलील थी कि उसके बेटे की हत्या के लिए उसके पास कोई मकसद नहीं था।
पीठ ने कहा, ‘‘जिस तरह एक मजबूत मकसद अपने आप में दोषसिद्धि का कारण नहीं बनता है, उसी तरह मकसद नहीं होने का एकमात्र आधार बरी करने की वजह नहीं हो सकता है।’’
यह फैसला दिल्ली उच्च न्यायालय के अगस्त 2022 के फैसले को चुनौती देने वाले व्यक्ति की अपील पर आया। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा व्यक्ति को दोषी करार देने और आजीवन कारावास की सजा सुनाने के फैसले की पुष्टि की।
शीर्ष अदालत के फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि अगर मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित होता, तो मकसद की अनुपस्थिति आरोपी के पक्ष में एक कारक होती।
यह बात संज्ञान में आई थी कि परिवार में दोषी, उसकी पत्नी और पांच बच्चे शामिल थे। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि 14-15 दिसंबर, 2012 की दरमियानी रात को जब पत्नी और उनकी दो बेटियां जागीं तो पति चिल्ला रहा था कि उसका बेटा मर चुका है।
व्यक्ति ने कथित तौर पर अपने परिवार के सदस्यों को यह समझाने की कोशिश की कि पेचकस से खुद को घायल करने के कारण उसकी मौत आत्महत्या थी।
जांच के दौरान, यह पाया गया कि मौत नजदीक से चलाई गई गोली से लगी चोट के कारण हुई थी।
अपील को खारिज करते हुए, पीठ ने कहा कि वह अपीलकर्ता की दोषसिद्धि और सजा में हस्तक्षेप नहीं करेगी।