दिल्ली, 19 अगस्त (ए) उच्चतम न्यायालय ने विकास दुबे मुठभेड़ कांड और आठ पुलिसकर्मियों के नरसंहार की घटनाओं की जांच के लिये शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी एस चौहान की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच आयोग के गठन पर सवाल उठाने वाली याचिका बुधवार को खारिज कर दी।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की तीन सदस्यीय पीठ ने इस संबंध में दायर याचिका खारिज करते हुये कहा कि कानुपर में हुयी मुठभेड़ की निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिये समुचित उपाय किये गये हैं।
शीर्ष अदालत ने 11 अगस्त को अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय की याचिका पर सुनाई के दौरान उन्हें मीडिया की खबरों के आधार पर जांच आयोग की अध्यक्षता कर रहे उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश पर लांछन लगाने की अनुमति नहीं दी।
पीठ ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश डा बलबीर सिंह चौहान , उच्च न्यायाय के पूर्व न्यायाधीश शशिकांत अग्रवाल और उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक के एल गुप्ता की सदस्यता वाले जांच आयोग के पुनर्गठन के लिये उपाध्याय की याचिका पर यह फैसला सुनाया।
उपाध्याय ने आरोप लगाया था कि न्यायमूर्ति डा चौहान के भाई उत्तर प्रदेश में विधायक हैं जबकि उनकी पुत्री का विवाह एक सांसद से हुआ है।
इस जांच आयोग को कानपुर के चौबेपुर थाने के अंतर्गत बिकरू गांव में तीन जुलाई को आधी रात के बाद विकास दुबे को गिरफ्तार करने गयी पुलिस की टुकड़ी पर घात लगाकर किये गये हमले में पुलिस उपाधीक्षक देवेन्द्र मिश्रा सहित आठ पुलिसकर्मियों के मारे जाने की घटना की जांच करनी है।
इसके अलावा आयोग को 10 जुलाई को विकास दुबे की मुठभेड़ में मौत की घटना और इससे पहले अलग अलग मुठभेड़ में दुबे के पांच साथियों के मारे जाने की घटना की जांच करनी है।