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संसद भवन भारत की गाथा का रहा है गवाह

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नयी दिल्ली, 12 अगस्त (ए) स्व-शासन की ओर पहले कदम से लेकर आजादी की सुबह तक और फिर देश के परमाणु शक्ति के रूप में उभरने तथा उससे आगे तक, मौजूदा संसद भवन की इमारत 1927 में अपने वजूद में आने के बाद से भारत की गाथा की गवाह रही है।

संसद के परिसर ने संविधान के निर्माण पर जीवंत बहस, महात्मा गांधी की मृत्यु की घोषणा के बाद मार्मिक दृश्यों और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा बांग्लादेश में पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के बिना शर्त आत्मसमर्पण की घोषणा के बाद खुशी के पलों को महसूस किया।

पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के भाषण, लाल बहादुर शास्त्री का शांत लेकिन दृढ़ संकल्प, इंदिरा गांधी की वाक्पटुता, अटल बिहारी वाजपेयी की काव्य प्रतिभा और नरेंद्र मोदी के ओजस्वी भाषणों का भी संसद भवन गवाह रहा है।

कनॉट के ड्यूक प्रिंस आर्थर द्वारा 1921 में औपनिवेशिक भवन की आधारशिला रखी गई और इसका उद्घाटन 18 जनवरी, 1927 को किया गया। संसद का हाल में समाप्त हुआ मॉनसून सत्र शायद पुराने भवन में आखिरी सत्र हो सकता है क्योंकि एक नया त्रिकोणीय भवन तेज रफ्तार से तैयार हो रहा है जिसका नवंबर में उद्घाटन हो सकता है।

वायसराय लॉर्ड इरविन ने 24 जनवरी, 1927 को तीसरी लेजिसलेटिव एसेंबली के पहले सत्र को संबोधित करते हुए कहा था, ‘‘आज आप दिल्ली में अपने नए और स्थायी सदन में पहली बार मिल रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘इस कक्ष में, एसेंबली को उसकी गरिमा और महत्व के योग्य एक व्यवस्था प्रदान की गई है और मैं इसके डिजाइनर के लिए केवल प्रशंसा ही नहीं बल्कि शुभकामनाओं को व्यक्त करता हूं जहां भारत के लोक मामलों का संचालन किया जाएगा, जो उनकी अवधारणा के सामंजस्य को दर्शा सकता है।’’

पंडित मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, पंडित मोतीलाल नेहरू, लाला लाजपत राय, सी एस रंगा अय्यर, माधव श्रीहरि अणे, विट्ठलभाई पटेल सहित अन्य तीसरी एसेंबली के सदस्य थे।

भारत सरकार अधिनियम, 1919 के जरिए अंग्रेजों ने सरकार में भारतीयों की अधिक से अधिक भागीदारी की अनुमति देना शुरू कर दिया था। दो साल बाद, क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने सदन द्वारा विवादास्पद व्यापार विवाद विधेयक पारित किए जाने के बाद दर्शक दीर्घा से एसेंबली कक्ष में बम फेंके।

आठ अप्रैल, 1929 की एसेंबली की कार्यवाही की आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार इस दौरान आगंतुक दीर्घा से दो बम फेंके गए और आधिकारिक सदस्यों वाली बेंच के बीच वे फट गए, जिससे कुछ सदस्य घायल हो गए। भ्रम की स्थिति बनी रही और अध्यक्ष ने विराम की घोषणा कर दी। कुछ मिनटों के बाद अध्यक्ष फिर से आसन पर बैठे। उस वक्त विट्ठलभाई पटेल एसेंबली के अध्यक्ष थे, एक ऐसा पद जिसे देश में संसदीय लोकतंत्र के रूप में ‘स्पीकर’ के रूप में जाना जाने लगा।

स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा की बैठक पूर्वाह्न 11:00 बजे हुई। उत्तर प्रदेश से एक सदस्य सुचेता कृपलानी ने विशेष सत्र के उद्घाटन के अवसर पर वंदे मातरम का पहला छंद गाया।

प्रधानमंत्री नेहरू ने अपना प्रसिद्ध ‘‘नियति से साक्षात्कार’’ भाषण दिया, जिसके बाद संविधान सभा के सदस्यों ने राष्ट्र की सेवा के लिए खुद को समर्पित करने का संकल्प लिया। अध्यक्ष जी वी मावलंकर ने 2 फरवरी, 1948 को लोकसभा की एक बैठक में गांधी की मृत्यु की घोषणा की। मावलंकर ने कहा, ‘‘हम आज दोहरी आपदा के साये में मिल रहे हैं, जब हमारे समय की सबसे बड़ी शख्सियत का दुखद निधन हो गया जो हमें गुलामी से आजादी की ओर ले गए तथा हमारे देश में राजनीतिक हिंसा के पंथ की फिर से उपस्थिति देखने को मिली है।’’

नेहरू ने कहा, ‘‘कीर्ति चली गई और हमारे जीवन में गर्माहट और रोशनी लाने वाला सूरज अस्त हो गया है तथा हम ठंड और अंधेरे में कांप रहे हैं।’’

उसी सदन में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने देश से हर हफ्ते एक समय का खाना छोड़ने की अपील की क्योंकि भारत खाद्यान्न की कमी से जूझ रहा था और 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध लड़ा था।

जब 1975 में आपातकाल लागू होने के बाद लोकसभा की बैठक हुई, तो सदन में मुद्दों को उठाने के लिए निजी सदस्यों के अधिकारों को निलंबित करने के सरकार के कदम के खिलाफ सदन ने कई सदस्यों के विरोध को देखा। उप गृह मंत्री एफ एच मोहसिन ने 21 जुलाई, 1975 को लोकसभा की बैठक के दौरान राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षरित आपातकाल की घोषणा को रखा। लोकसभा सदस्यों सोमनाथ चटर्जी, इंद्रजीत गुप्ता, जगन्नाथराव जोशी, एच एन मुखर्जी, पी के देव ने अपने अधिकारों के निलंबन का विरोध किया।

कालाहांडी से स्वतंत्र पार्टी के सदस्य देव ने कहा, ‘‘यह लोकतंत्र के लिए अंतिम शोक गीत हो सकता है, लेकिन मुझे कहना है और मैं पुरजोर तरीके से कहता हूं कि जब शक्तियों के इस प्रकृति के निलंबन के लिए कोई विशिष्ट नियम नहीं है, तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।’’

वर्ष 1989 में गठबंधन युग के आगमन के साथ, संसद ने 1998 तक सरकारों में लगातार बदलाव देखा, जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने प्रधानमंत्री वाजपेयी के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाई। एक साल के भीतर वाजपेयी नीत सरकार 17 अप्रैल, 1999 को लोकसभा में एक वोट से विश्वास मत हारने के बाद गिर गई। बाद के आम चुनावों में फिर से यह सरकार निर्वाचित हुई।

वर्ष 1974 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 22 जुलाई को संसद में एक विस्तृत बयान दिया, जिसमें पोखरण में ‘‘शांतिपूर्ण परमाणु प्रयोग’’ और अन्य देशों की प्रतिक्रिया के बारे में सदन को अवगत कराया। लगभग 24 साल बाद 1998 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने उस वर्ष 11 मई और 13 मई को वैज्ञानिकों द्वारा पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण किए जाने के बाद भारत को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र घोषित किया।

वाजपेयी ने कहा, ‘‘भारत अब परमाणु हथियार संपन्न देश है। यह एक ऐसी वास्तविकता है जिसे नकारा नहीं जा सकता, यह कोई सम्मान नहीं है जिसे हम चाहते हैं, न ही यह दूसरों को देने का दर्जा है। यह हमारे वैज्ञानिकों और इंजीनियरों द्वारा राष्ट्र के लिए एक दान है। यह भारत का हक है, मानव जाति के छठे हिस्से का अधिकार है।’’

उन्होंने परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल न करने की नीति की भी घोषणा कर परीक्षणों से अनजान दुनिया को आश्वस्त किया। 2008 में, तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वाम दलों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ अपनी गठबंधन सरकार का जोरदार बचाव किया, जिसने अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर मतभेदों के बाद समर्थन वापस ले लिया था।

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