नयी दिल्ली, छह नवंबर (ए) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) को आदेश दिया कि वह अपने छात्र पर पहले सीबीएसई रिकॉर्ड में अपना नाम बदलवाने की शर्त रखे बिना उसके नाम में बदलाव करे।
अदालत ने कहा कि छात्र से सीबीएसई रिकॉर्ड में नाम बदलवाने के लिए कहना ‘‘असंभव बात करने के लिए कहने‘‘ के समान है।
न्यायमूर्ति जयंत नाथ ने कहा कि छात्र ने 2018 में 12वीं कक्षा उत्तीर्ण की थी। उसने 2019 में अपने नाम में बदलाव की मांग की। उस समय वह डीयू का छात्र था, इसलिए उससे सीबीएसई रिकॉर्ड में नाम बदलवाने के लिए कहना ‘‘एक अनुपयुक्त अनिवार्यता है और इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता’’।
अदालत ने हिंदू कॉलेज के छात्र रेयान सिंह की याचिका पर यह टिप्पणी की। रेयान सिंह ने अनुरोध किया है कि डीयू रिकॉर्ड में उसका नाम बदलकर रेयान चावला किया जाए।
उसने डीयू की 2015 की अधिसूचना को चुनौती दी है कि विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में नाम बदलवाने के लिए पहले केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा जारी प्रमाण पत्र में बदलाव अनिवार्य है।
याचिका के अनुसार छात्र अपने पिता के बजाए अपनी मां का उपनाम लगाना चाहता है। याचिका में कहा गया है कि रेयान के माता-पिता 2007 में अलग रहने लगे थे और उनका 2015 में तलाक हो गया था और अपने पूरे जीवन में उसका अपने पिता के साथ ‘‘कभी किसी प्रकार का रचनात्मक संबंध नहीं’’ रहा।
वह दो समाचार पत्रों और भारत के राजपत्र में भी अपने नाम में बदलाव संबंधी घोषणा पहले की प्रकाशित करा चुका है।
डीयू ने इस आधार पर याचिका का विरोध किया कि रेयान के पास अपने माता-पिता के तलाक के बाद नाम बदलवाने का पर्याप्त समय था, क्योंकि उसने 2012 में 12वीं कक्षा पास की थी।
अदालत डीयू की इस दलील से सहमत नहीं हुई।
अदालत ने डीयू को अपने रिकॉर्ड में छात्र का नाम बदलने का आदेश देते हुए कहा कि सीबीएसई और डीयू के प्रमाण पत्रों में नाम को लेकर किसी भी प्रकार के भ्रम से बचने के लिए विश्वविद्यालय छात्र के नाम के आगे — ‘बदला हुआ नाम उर्फ/पूर्व उपनाम’– लिख सकता है।