नयी दिल्ली: सात जनवरी (ए) उच्चतम न्यायालय ने किराये की कोख (सरोगेसी) संबंधी कानूनों के तहत ‘सरोगेट’ माताओं और अन्य के लिए आयु सीमा से जुड़े मुद्दों की 11 फरवरी को पड़ताल करने को लेकर मंगलवार को सहमति जताई।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने सरोगेसी विनियमन अधिनियम और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली लगभग 15 याचिकाओं पर सुनवाई की और केंद्र से मामले में अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा।केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रही अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि वह लिखित दलीलें दाखिल करेंगी और सरकार शीर्ष अदालत के निर्देशों का पालन करेगी।अदालत ने मामले में अंतरिम आदेश पारित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
वर्ष 2021 के सरोगेसी कानून में इच्छुक माता-पिता और सरोगेट माताओं के लिए आयु सीमा निर्धारित की गई है।
कानून के अनुसार, इच्छित मां की आयु 23 से 50 वर्ष के बीच होनी चाहिए तथा इच्छित पिता की आयु 26 से 55 वर्ष के बीच होनी चाहिए।
इसके अलावा, सरोगेट मां विवाहित होनी चाहिए तथा उसकी आयु 25 से 35 वर्ष के बीच होनी चाहिए, साथ ही उसका खुद का एक जैविक बच्चा होना चाहिए। ऐसी महिला अपने जीवनकाल में केवल एक बार ‘सरोगेट’ के रूप में कार्य कर सकती है।
कानून में सरोगेसी को विनियमित करने के लिए शर्तें भी दी गई हैं।
शीर्ष न्यायालय ने सरोगेट माताओं के हितों की रक्षा के महत्व को रेखांकित किया था तथा शोषण रोकने के लिए एक मजबूत प्रणाली की आवश्यकता पर बल दिया था, विशेष रूप से यह देखते हुए कि भारत में वाणिज्यिक सरोगेसी प्रतिबंधित है।
पीठ ने कहा था, “एक डेटाबेस हो सकता है, ताकि एक ही महिला का शोषण न हो। एक प्रणाली अवश्य होनी चाहिए। कोई भी यह नहीं कह रहा है कि यह (सरोगेसी) एक बुरा विचार है, लेकिन इसका गलत तरीके से इस्तेमाल भी किया जा सकता है।”
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि परोपकारी सरोगेसी सराहनीय है, लेकिन सरोगेट माताओं के लिए पर्याप्त मुआवजा तंत्र की कमी ने महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश की हैं।