उच्च न्यायालय ने दल-बदल कानून में विलय पर संरक्षण को चुनौती पर केंद्र से जवाब मांगा

राष्ट्रीय
Spread the love

मुंबई,20 दिसंबर (ए)। बंबई उच्च न्यायालय ने दो दलों के आपस में विलय कर लेने की स्थिति में दल-बदल कानून के तहत उन्हें अयोग्य करार दिये जाने से प्राप्त संरक्षण को एक जनहित याचिका के माध्यम से दी गयी चुनौती पर बुधवार को सरकार को जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की खंडपीठ ने महान्यायवादी आर वेंकटरमनी को भी नोटिस जारी किया क्योंकि जनहित याचिका में संविधान की दसवीं अनुसूची के चौथे अनुच्छेद की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गयी है। दसवीं अनुसूची दल-बदल कानून से संबंधित है।यह प्रावधान कहता है कि दो दलों के आपस में विलय कर लेने की स्थिति में दल-बदल के आधार पर (उन्हें) अयोग्य नहीं करार दिया जा सकता है।

उच्च न्यायालय मीडिया एवं विपणन पेशेवर तथा गैर सरकारी संगठन वनशक्ति की संस्थापक न्यासी मीनाक्षी मेनन की जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा था।

खंडपीठ ने केंद्र सरकार को छह सप्ताह के अंदर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

मेनन के वकील अहमद आब्दी ने दलील दी कि दल-बदल ‘सामाजिक बुराई’ है तथा विधायक/सांसद जनहित के कारण नहीं बल्कि सत्ता, धन के लालच में तथा कभी-कभी जांच एजेंसियों के डर से अपनी निष्ठा बदल लेते हैं।

आब्दी ने कहा, ‘‘इन सब बातों की मार मतदाता भुगत रहा है। मतदाता संसद तो जा नहीं सकता, मतदाता बस अदालत ही आ सकता है। एक खास विचारधारा या घोषणापत्र के आधार पर वोट डाला जाता है लेकिन बाद में पार्टी ही बदल जाती है। यह मतदाता के साथ विश्वासघात है।’’

मेनन की अर्जी में अनुरोध किया गया है कि अदालत दसवीं अनुसूची में राजनीतिक दलों के ‘विभाजन एवं विलय’ की व्यवस्था देने वाले अनुच्छेद को असंवैधानिक तथा उसके मूल स्वरूप के विरूद्ध घोषित करे।

याचिका में कहा गया है कि नेता गुट या समूह में दल बदल करने के लिए इस प्रावधान का इस्तेमाल करते हैं और इस प्रक्रिया में मतदाताओं के साथ विश्वासघात किया जाता है।