लखनऊ: 21 दिसंबर (ए) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने समाजवादी पार्टी (सपा) के बागी विधायक अभय सिंह और उनके चार साथियों को बरी करने से जुड़े मामले को नई पीठ के मनोनयन के लिए मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया है।
यह फैसला दो न्यायाधीशों के खंडित फैसले के बाद आया है, जिन्होंने अंबेडकर नगर में विशेष सांसद/विधायक अदालत द्वारा दर्ज किए गए बरी करने के मामले में परस्पर विरोधी फैसले दिए थे। अब इस मामले की नए सिरे से सुनवाई होगी, जिसमें नई पीठ नया फैसला सुनाएगी।न्यायमूर्ति ए आर मसूदी और न्यायमूर्ति अजय कुमार श्रीवास्तव की पीठगोली लगने की घटना से संबंधित मामले में अभय सिंह और उनके साथियों-रमाकांत यादव, रविकांत यादव, शंभूनाथ सिंह और संदीप सिंह ऊर्फ पप्पू को बरी किए जाने को चुनौती देने वाली आपराधिक अपील पर सुनवाई कर रही थी।न्यायमूर्ति मसूदी ने बरी करने के फैसले को पलटते हुए आरोपियों को दोषी ठहराया और उन्हें अधिकतम तीन साल के कठोर कारावास और 5,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई।
न्यायमूर्ति श्रीवास्तव ने बरी करने के फैसले को बरकरार रखा और तर्क दिया कि अपीलकर्ता विकास सिंह विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए स्वीकार्य सबूत पेश करने में विफल रहे।हालांकि, दोनों न्यायाधीशों ने दो अन्य आरोपी व्यक्तियों, गिरीश पांडे (उर्फ डिप्पुल पांडे) और विजय गुप्ता को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा।मामला 15 मई 2010 का है, जब गंभीर आपराधिक इतिहास वाले विकास सिंह ने अयोध्या के महाराजगंज थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। अपनी शिकायत में सिंह ने अभय सिंह और उसके साथियों पर उसकी कार का पीछा करने और उसे और उसके साथियों को गोली मारने का प्रयास करने का आरोप लगाया था, जब वे सिंह के पैतृक गांव जा रहे थे।
सिंह ने आरोप लगाया कि अभय और उसके साथियों ने कार पर गोलियां चलाईं, लेकिन गोलियां चूक गईं और केवल वाहन को लगीं।
अपीलकर्ता के वकील संदीप यादव ने कहा कि जांच के बाद अभय सिंह समेत सात लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किये गये थे।
जनवरी 2023 में आरोपी शंभूनाथ के अनुरोध पर उच्च न्यायालय ने मुकदमें को अयोध्या से अंबेडकर नगर स्थानांतरित कर दिया। 10 मई 2023 को विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट ने अपर्याप्त साक्ष्य के कारण सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
सिंह ने बरी किए जाने के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की, जिसमें तर्क दिया गया कि निचली अदालत ने साक्ष्य का सही आकलन नहीं किया, जिसके कारण गलत तरीके से बरी किया गया।
अपने फैसले में, न्यायमूर्ति मसूदी ने बरी किए जाने की आलोचना करते हुए कहा कि अपीलकर्ता और अभय सिंह दोनों की आपराधिक पृष्ठभूमि थी, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आरोप झूठे थे।
उन्होंने बताया कि अपीलकर्ता ने प्राथमिकी में उल्लेख किया था कि अभय सिंह एक ‘माफिया डॉन’ है और उनकी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता कथित हमले का एक मकसद हो सकती है। दूसरी ओर, न्यायमूर्ति श्रीवास्तव ने कहा कि विशेष एमपी/एमएलए कोर्ट द्वारा बरी किए जाने में कोई अवैधता नहीं थी और यह विकृत नहीं था। मामला अब एक नई नियुक्त पीठ के समक्ष नई सुनवाई का इंतजार कर रहा है।