नयी दिल्ली: 14 फरवरी (ए) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि अदालतें विधायिका को किसी विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकतीं।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दिल्ली उच्च न्यायालय के फरवरी 2024 के आदेश के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर एक जनहित याचिका का अपने आदेश में निस्तारण कर दिया था।पीठ ने याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए कहा, ‘‘संसद ने हर पहलू पर विचार करने के बाद एक नया अधिनियम बनाया है। रिट अधिकार क्षेत्र में, न तो उच्च न्यायालय और न ही उच्चतम न्यायालय विधायिका को किसी विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश दे सकता है।’’
जनहित याचिका में जिला अदालतों या पुलिस को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे शिकायतकर्ता या पीड़ित को आरोपपत्र की प्रति निःशुल्क उपलब्ध कराएं।
केंद्र की ओर से पेश हुए वकील ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस), 2023 की धारा 230 का हवाला देते हुए कहा कि याचिका निरर्थक है।
केंद्र के वकील ने कहा कि धारा 230 के अनुसार, किसी भी मामले में जहां पुलिस रिपोर्ट के आधार पर कार्यवाही शुरू की गई हो, मजिस्ट्रेट को आरोपी और पीड़ित को पुलिस रिपोर्ट और प्राथमिकी सहित दस्तावेजों की प्रति निःशुल्क उपलब्ध करानी चाहिए।
याचिका में सभी जिला अदालतों को निर्देश देने की मांग की गई है कि वे संज्ञान लेते समय शिकायतकर्ताओं या पीड़ितों को नोटिस जारी करें ताकि वे सुनवाई कराने के अपने अधिकार का प्रयोग कर सकें और सुनवाई-पूर्व आपराधिक कार्यवाही में भाग ले सकें।
शीर्ष अदालत के फैसले और दंड प्रक्रिया संहिता में संशोधन का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि पीड़ित या शिकायतकर्ता को पर्याप्त अधिकार दिए गए हैं, ताकि वे इच्छुक होने पर सुनवाई पूर्व और सुनवाई की कार्यवाही में प्रभावी रूप से भाग ले सकें।
इसने दिल्ली उच्च न्यायालय के नियमों का भी हवाला दिया और कहा कि यह स्पष्ट है कि आपराधिक मामले में पक्षकार अर्जी देकर मामले के रिकॉर्ड की प्रतियां प्राप्त करने का हकदार है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों पर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) के कार्यान्वयन के लिए अक्टूबर 2020 में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पहले ही निर्देश जारी कर दिया है।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘आरोप पत्र दाखिल करने के संबंध में उक्त एसओपी के पैराग्राफ 23 में पुलिस को पीड़ित/सूचनाकर्ता को बिना किसी खर्चे के आरोप पत्र की प्रति उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है।’’