इंदौर: सात मार्च (ए) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी महिला को उसके पति द्वारा पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर करना और महिला पर किसी ऐसे व्यक्ति के साथ रहने के लिए दबाव डालना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है जो न तो शिक्षित है और न ही खुद में सुधार के प्रति उत्सुक है।
उच्च न्यायालय ने एक महिला की गुहार पर उसके पति के साथ उसकी शादी को कानूनन रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।इस महिला ने उच्च न्यायालय में शाजापुर के कुटुम्ब न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ अपील की थी, जिसमें पति से तलाक लेने की उसकी अर्जी खारिज कर दी गई थी।
महिला ने उच्च न्यायालय में दायर अपील में कहा कि उसकी शादी शाजापुर जिले के एक व्यक्ति से वर्ष 2015 में हुई थी और तब उसने 12वीं उत्तीर्ण की थी। महिला के मुताबिक वह शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती थी, लेकिन उसके ससुराल पक्ष के लोग इसके सख्त खिलाफ थे।
महिला अपने विवाह के कुछ ही दिन बाद मायके लौट आई थी और उसने पति से तलाक लेने की अर्जी कुटुम्ब न्यायालय में दायर की थी, लेकिन अदालत ने उसकी अर्जी खारिज कर दी थी और उसे पति के साथ दाम्पत्य संबंधों की बहाली का आदेश दिया था।
उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति गजेंद्र सिंह ने मामले के तथ्यों और दोनों पक्षों की दलीलों पर गौर के बाद कुटुम्ब न्यायालय के फैसले को निरस्त करते हुए महिला की अपील बृहस्पतिवार (छह मार्च) को मंजूर कर ली। इसके साथ ही, महिला के पति के साथ 10 साल पहले हुई उसकी शादी को हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत रद्द कर दिया।अदालत ने अपने फैसले में इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि विवाह के बाद पिछले 10 वर्ष की अवधि के दौरान महिला और उसका पति जुलाई 2016 में केवल तीन दिनों तक साथ रहे हैं और “पत्नी के लिए यह अनुभव एक बुरा सपना था जिसके बाद वे कभी एक-दूसरे के साथ नहीं रहे।”
युगल पीठ ने अपने फैसले में अमेरिकी दार्शनिक जॉन डेवी के इस मशहूर कथन का हवाला भी दिया,‘‘शिक्षा का मतलब सिर्फ जीवन की तैयारी करना नहीं है, बल्कि शिक्षा खुद जीवन है।’’