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नयी दिल्ली: 16 अप्रैल (ए) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के दो पुलिस अधिकारियों पर दीवानी प्रकृति के एक संपत्ति विवाद में प्राथमिकी दर्ज करने पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत में दीवानी विवादों में प्राथमिकी दर्ज करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की बाढ़ आ गई है और यह प्रथा (दीवानी मामलों में प्राथमिकी) “अनेक निर्णयों का उल्लंघन” है।भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा, “दीवानी गलतियों के लिए आपराधिक मामला दर्ज करना अस्वीकार्य है।” पीठ ने दोषी पुलिस अधिकारियों पर लगाया गया जुर्माना माफ करने से इनकार कर दिया।
पीठ ने कहा, “आप 50,000 रुपये का जुर्माना अदा करें और इसे अधिकारियों से वसूल करें।”
प्रधान न्यायाधीश ने मामले के तथ्य दर्ज किए और कहा कि इस मामले में उत्तर प्रदेश के कानपुर निवासी रिखब बिरानी और साधना बिरानी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।
इसी तरह के एक मामले पर सुनवाई करते हुए सीजेआई ने पहले कहा था, “उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह से खत्म हो चुका है। दीवानी मामले को फौजदारी मामले में बदलना स्वीकार्य नहीं है।”
इसके बाद राज्य पुलिस महानिदेशक को इस विशेष मामले में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया गया।
इस मामले में, पीठ ने कहा कि राज्य पुलिस द्वारा प्राथमिकी इस तथ्य के बावजूद दर्ज की गई कि एक स्थानीय मजिस्ट्रेट अदालत ने बिरानी परिवार के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने के निर्देश देने के अनुरोध वाली शिल्पी गुप्ता की दो अलग-अलग याचिकाओं को दो बार खारिज कर दिया था।
रिकॉर्ड में यह बात सामने आई कि बिरानी ने मौखिक रूप से 1.35 करोड़ रुपये में गुप्ता को कानपुर स्थित अपना गोदाम बेचने का समझौता किया था।
गुप्ता ने बिक्री के आंशिक भुगतान के रूप में केवल 19 लाख रुपये का भुगतान किया और 15 सितंबर, 2020 तक बिरानी परिवार को तय 25 प्रतिशत अग्रिम राशि का भुगतान नहीं कर सकीं।बाद में, बिरानी ने इस गोदाम को 90 लाख रुपये की कम कीमत पर एक तीसरे पक्ष को बेच दिया और गुप्ता द्वारा भुगतान किए गए 19 लाख रुपये वापस नहीं किए, जिन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए दो बार फौजदारी अदालत का दरवाजा खटखटाया, लेकिन वे असफल रहीं।
स्थानीय अदालत ने कहा कि वह आपराधिक जांच का आदेश नहीं दे सकती क्योंकि मामला दीवानी प्रकृति का था।
स्थानीय पुलिस ने हालांकि धोखाधड़ी, आपराधिक धमकी समेत अन्य अपराधों के लिए बिरानी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, जिसके बाद उन्हें अदालत ने तलब किया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया और उन्हें मुकदमे का सामना करने को कहा।
इसके बाद आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई।