नयी दिल्ली: 23 अप्रैल (ए)।) उच्चतम न्यायालय ने चिकित्सकों पर बढ़ते हमलों से उन्हें बचाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर विचार करने से बुधवार को इनकार कर दिया और कहा कि उससे (शीर्ष न्यायालय से) हर काम करने और हर गतिविधि पर नजर रखने की उम्मीद नहीं की जा सकती।
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने उच्चतम न्यायालय के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि संबंधित दिशा-निर्देश पहले ही निर्धारित किए जा चुके हैं और याचिकाकर्ता उचित वाद दायर करने के लिए स्वतंत्र हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘आप उच्चतम न्यायालय से यह अपेक्षा नहीं कर सकते कि सभी कुछ वह करेगा और प्रत्येक गतिविधि पर निगरानी रखेगा।’’
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने जब चिकित्सकों पर हमले की घटनाओं का उल्लेख किया, तो पीठ ने कहा, ‘‘ये सभी बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हैं लेकिन उच्चतम न्यायालय यहां बैठकर प्रत्येक घटना की निगरानी नहीं कर सकता है।’’
पीठ 2022 में दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें चिकित्सकों पर हमले के मामले बढ़ने का आरोप लगाया गया था और उनकी सुरक्षा के लिए व्यापक दिशा-निर्देश तैयार करने का अनुरोध किया गया था।
एक याचिका में राजस्थान के दौसा में एक स्त्री रोग विशेषज्ञ की कथित आत्महत्या की जांच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से कराने का अनुरोध किया गया है।
राजस्थान में प्रसव के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव के कारण एक मरीज की मौत के बाद भीड़ द्वारा कथित रूप से परेशान किये जाने के बाद स्त्री रोग विशेषज्ञ ने आत्महत्या कर ली थी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय के 21 अक्टूबर, 2022 के आदेश का हवाला दिया, जिसमें केंद्र और अन्य को नोटिस जारी कर इन याचिकाओं पर जवाब मांगा गया था।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश एक वकील ने कहा कि वास्तविकता यह है कि भले ही उच्चतम न्यायालय का कोई फैसला आ गया हो, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं बदला है।
पीठ ने पूछा, ‘‘तो फिर दोबारा दिशा-निर्देश देने का क्या मतलब है?’’
जब वकील ने कहा कि संसद ने भी इस मुद्दे पर विचार किया है, तो पीठ ने कहा, ‘‘यह काम संसद को करना है।’’
जब वकील ने दलील दी कि चिकित्सकों पर हमले के मामलों से निपटने के लिए पुलिस को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, तो पीठ ने कहा, ‘‘ये सभी नीतिगत मामले हैं।’’
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि चिंता की बात यह है कि देशभर के पुलिस थाने इलाज के दौरान दुर्भाग्यवश मरीजों की मौत हो होने पर चिकित्सकों के खिलाफ मामले दर्ज कर रहे हैं।
पीठ ने पूछा, ‘‘सभी पुलिस थानों के खिलाफ इस तरह का आरोप कैसे लगाया जा सकता है?’’
इसने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने अपने पिछले फैसले में पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर दिए हैं और निर्देशों का उल्लंघन अवमानना के समान होगा।
पीठ ने कहा, ‘‘इस तरह सामान्य निर्देश कैसे दिए जा सकते हैं?’’
शंकरनारायणन ने कहा कि अक्टूबर 2022 में उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी नोटिस के अनुसार, चार राज्यों ने अपने जवाब दाखिल किए और उन्होंने याचिका की स्वीकार्यता पर कोई आपत्ति नहीं जताई।
पीठ ने पूछा, ‘‘तो क्या एक बार नोटिस जारी होने के बाद दूसरी पीठ इसे (याचिका को) खारिज नहीं कर सकती?’’
पीठ ने कहा, ‘‘यदि यह तुच्छ नहीं है तो यह परेशान करने वाली बात है।’’
शंकरनारायणन ने कहा कि याचिका में उठाए गए मुद्दे न तो परेशान करने वाले हैं और न ही तुच्छ।
शंकरनारायणन ने बाद में अनुरोध किया कि क्योंकि चार राज्यों से जवाब आ चुके हैं, इसलिए उच्चतम न्यायालय इस मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दे।