भारत में एक ऐसी जगह जहां कबूतरों के नाम है जमीन, बैंक बैलेंस और पैन कार्ड,सुनने में अजीब किन्तु सत्य

राष्ट्रीय
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जोधपुर,24 जनवरी (ए)। राजस्थान के कई हिस्सों में कबूतरों को दाना-चुग्गा डालने की परंपरा हैलेकिन मारवाड़ के कबूतर कई लोगों के लिए रहने-खाने का इंतजाम भी करते हैं। यह बात सुनने में अजीब जरूर है, लेकिन सच है। जी हां, हम बात कर रहे हैं जोधपुर जिले के असोप कस्बे की, जहां पर कबूतरों के नाम जमीन, बैंक बैलेंस, मकान, दुकान हैं और इनके बाकायदा पैन नंबर भी हैं। कबूतरों के किराएदार भी हैं और उनके किराए और जमीन की आय से धर्म-कर्म से जुड़े कार्य होते हैं। जानकारी के अनुसार जोधपुर से 90 किलोमीटर दूर असोप में कबूतरों का बैंक बैलेंस करीब 30 लाख है और उनके नाम है 364 बीघा जमीन। इस जमीन पर खेती के लिए बोली लगती है और आमदनी कबूतरों के खाते में जाती है। जमीन की कीमत 20 करोड़ से ज्यादा है। बताया जाता है कि रियासती काल में आसोप के कुछ धनाढ्य लोग जिनके कोई वारिस नहीं था, उन्होंने अपनी जमीन कबूतरों के नाम लिख दी। अब तक यह जमीन 360 बीघा हो चुकी है। यही नहीं, कबूतरों की देखरेख के लिए एक ट्रस्ट भी बना हुआ है। जो हर साल इस जमीन को खेती के लिए किराए पर देता है। आय से कबूतरों के लिए दाना-पानी खरीदा जाता है। वर्तमान में असोप की यूको बैंक शाखा में कबूतरों के नाम पर करीब 30 लाख से अधिक की राशि जमा है इसके अलावा कबूतरों के नाम कस्बे में तीन पक्की दुकानें हैं। असोप में इन मूक पंछियों के लिए काम करने वाली 100 साल से भी ज्यादा पुरानी कबूतरान कमेटी है। कमेटी के सदस्य बताते हैं कि कस्बे में 21 चबूतरे हैं जहां असंख्य कबूतर दाना चुगते हैं।
यहां पर कबूतरों के लिए करीब 10 क्विंटल ज्वार डाली जाती है, जिन मोहल्लों में कबूतरों के चबूतरे बने हुए हैं, वहां रहने वाले लोग लोगों पर भी प्रतिदिन कबूतरों के लिए डालने की जिम्मेदारी निभाते हैं। करीब 10- 11 साल पहले एक बार अकाल के चलते अशोक कस्बे में संचालित की जा रही भगवान श्री कृष्ण गोशाला की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी। और गौशाला में चारा भी खत्म हो गया था। चारा खरीदने के लिए गौशाला समिति के पास बजट भी नहीं था, ऐसे में गांव के करोड़पति कबूतर ही काम आए इसके लिए कबूतरण ट्रस्ट ने गौशाला को 10 लाख रुपए की सहायता राशि प्रदान की, जिससे गौशाला में पल रही गायों के लिए चारा और भूसा आदि की व्यवस्था की गई।