नयी दिल्ली, 12 जनवरी (ए) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि नाबालिग के कल्याण का विचार सर्वोपरि होता है और किसी बच्चे के संरक्षण के विवाद में दोनों पक्षों के अधिकार अप्रासंगिक होते हैं।
उसने कहा कि बच्चे की सलामती और कुशलता के विचार को अभिभावकों के व्यक्तिगत अधिकारों पर तरजीह मिलनी चाहिए।
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति एस ओका की पीठ ने कहा, ‘‘इस अदालत ने इस सिद्धांत का सतत अनुसरण किया है कि नाबालिग के कल्याण का विचार सबसे ऊपर होगा और बच्चे को रखने से संबंधित विवाद में पक्षों के अधिकार अप्रासंगिक हैं।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि जब कोई अदालत फैसला लेती है कि किसी एक अभिभावक के संरक्षण में रहना नाबालिग के सर्वश्रेष्ठ हित में है तो दूसरे अभिभावक के अधिकार प्रभावित होते ही हैं।
पीठ ने कहा, ‘‘बच्चे की कुशलता और कल्याण की सोच को अभिभावकों के व्यक्तिगत या अलग-अलग अधिकारों पर तरजीह मिलनी चाहिए।’’
उसने कहा कि बच्चे के संरक्षण विवाद में मानवीय मुद्दे शामिल होते हैं जो हमेशा जटिल और उलझे हुए होते हैं तथा बच्चे का कल्याण अनेक कारकों पर निर्भर करता है।
अमेरिका के एक नागरिक और उसकी पत्नी के बीच उनके नाबालिग पुत्र के संरक्षण का अधिकार प्राप्त करने की कानूनी लड़ाई से संबंधित मामले में शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी की।