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स्वशासन, गरिमा और स्वतंत्रता का उल्लेखनीय स्वदेशी उत्पाद है संविधान: प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़

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मुंबई,11 फरवरी (ए) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि भारत का संविधान स्वशासन, गरिमा और स्वतंत्रता का एक उल्लेखनीय स्वदेशी उत्पाद है तथा कुछ लोग इसकी अत्यधिक प्रशंसा करते हैं, जबकि कई अन्य इसकी सफलता के बारे में संशयवादी हैं।.

प्रधान न्यायाधीश ने नागपुर स्थित महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रथम दीक्षांत समारोह में कहा, ‘‘भारत के औपनिवेशिक शासकों ने हमें संविधान नहीं प्रदान किया है।’’.उन्होंने कहा कि संविधान के अनुरूप व्यापक कदम उठाये हैं, हालांकि अब भी काफी कुछ किये जाने की जरूरत है। सीजेआई ने कहा कि अतीत में गहरी जड़ें जमाये रखने वाली असमानता आज भी मौजूद है।सीजेआई ने कहा कि यदि कानून के युवा छात्रों और स्नातकों का मार्गदर्शन संविधान के मूल्यों से होगा, तब वे नाकाम नहीं होंगे। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना का उल्लेख करते हुए कहा कि यह छोटा है, लेकिन संविधान का महत्वपूर्ण हिस्सा है और कहता है कि ‘‘हम भारत के लोग इस संविधान को खुद को सौंपते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘औपनिवेशिक शासकों ने अनुग्रह के रूप में हमें संविधान नहीं प्रदान किया। हमारा (संविधान) एक ऐसा दस्तावेज है, जिसे देश में तैयार किया गया है…जो स्वशासन, गरिमा और स्वतंत्रता का उत्पाद है।’’ न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘हमारे संविधान की सफलता को आमतौर पर ‘स्पेक्ट्रम’ के दो विपरित छोर से देखा जाता है। कुछ लोग हमारे संविधान की अत्यधिक प्रशंसा करते हैं, जबकि अन्य इसकी सफलता को लेकर संशयवादी हैं।’’चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘जब संविधान को उस संदर्भ में देखा जाता है जिसमें यह उभरा था, यह कहीं से भी कम उल्लेखनीय नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि संविधान ने अधिक न्यायपूर्ण और लोकतांत्रिक समाज बनाने की दिशा में लंबे कदम बढ़ाये हैं। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन काफी कार्य पूरा किया जाना शेष है। स्वतंत्रता के समय हमारे समाज में गहरी जड़ें जमायी हुई असमानता आज भी मौजूद है। इसे दूर करने के लिए हमारे समाज में संविधानवाद की भावना लाने की जरूरत है।’’ डॉ भीम राव आंबेडकर द्वारा (समाज में) सामना की गई समस्याओं के बारे में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत के लोग कई संवैधानिक अधिकारों के लिए उनके ऋणी 

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