गोरखपुर, 07 मई (ए)। कोरोना महामारी के बीच उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसे देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोरोना से मौत के सरकारी आंकड़े भले ही कम हों लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। शहर के अधिकतर मोहल्लों में खड़े पीपल के पेड़ इन दिनों घड़ों से लदे पड़े हुए हैं। उनमें इतनी जगह नहीं बची है कि और घड़े बांधे जा सकें। यहां मौतों की अलग से गिनने की जरूरत नहीं। ये घड़े इस बात का सबूत हैं कि पीपल के पास रहने वाले कितने लोगों की मौत हुई है।
यहां लोगों का कहना है कि उन्होंने ऐसा इससे पहले कभी नहीं देखा। अधिकतर लोगों की मौत कोरोना से हुई है। हर तीसरे घर में मातम पसरा है। ये घड़े 10 दिन के अंदर हुई मौतों की गवाही दे रहे हैं। हालांकि अलग-अलग रीति से हो रहे अंतिम संस्कार के कारण ये आंकड़े भी पूरी तरह सही नहीं कहे जा सकते। आर्य समाज के रीति रिवाज से अंतिम संस्कार करने पर घड़े नहीं बांधे जाते हैं।
यहां हिंदू रीति-रिवाज के मुताबिक, किसी की मौत होने के बाद आत्मा की शांति के लिए पीपल के पेड़ पर एक घड़ा बांधा जाता है। इसमें 10 दिन तक रोज पानी दिया जाता है। पेड़ पर बंधे घड़े यह बताते हैं कि 10 दिनों के अंदर आस- पास कितने लोगों की मौत हुई है। शहर के शिवपुर सहबाजगंज मोहल्ले में एक पीपल के पेड़ में 24 घड़े बंधे हुए हैं। यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि इनमें से अधिकतर मौतें कोरोना से हुई हैं। हर दिन एक- दो नए घड़े बांधे जा रहे हैं। वहीं, पीपल पर जगह न होने के कारण नए घड़ों को टांगने के लिए 10 दिन पूरा हो जाने वाले घड़ों को उतार दिया जा रहा है।
पंडितों के अनुसार हिंदू संस्कृति में मृत्यु के बाद पीपल पर घड़े बांधने की परंपरा है। गरुण पुराण के मुताबिक, पीपल को देवताओं का घर कहा जाता है। मृत्यु के बाद जीव देवताओं की शरण के लिए भागते हैं। इसलिए मृत्यु होने के बाद एक घड़े को घर के पास किसी पीपल के पेड़ पर टांग दिया जाता है। इस घड़े की पेंदी (निचले भाग) में छेद कर दिया जाता है, ताकि बूंद-बूंद पानी पीपल की जड़ में जाता रहे। मुखाग्नि देने वाला सख्स दस दिन तक हर सुबह पानी देता है। शाम को तिल के तेल का दीपक जलाते हैं। 11वें दिन महाब्राह्मण आते हैं, वे उस घड़े को फोड़ते हैं।