नयी दिल्ली: 27 फरवरी (ए) दिल्ली की एक अदालत ने शादी का झांसा देकर एक महिला के साथ बलात्कार करने के आरोपी एक सैन्य अधिकारी को बरी कर दिया और कहा कि इस तरह के वादे को लंबे समय एवं अनिश्चितकाल तक ‘‘यौन संबंध बनाने के लिए प्रलोभन’’ नहीं माना जा सकता।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गजेंद्र सिंह नागर ने सेना के अधिकारी के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई की। अधिकारी पर महिला को दो बार गर्भपात के लिए मजबूर करने का भी आरोप था।अदालत ने 25 जनवरी को दिए फैसले में कहा, ‘‘उच्च न्यायालयों ने माना है कि शादी का वादा करके शारीरिक संबंध बनाने के लिए प्रलोभन देना और पीड़िता का प्रलोभन का शिकार होना, उस समय के संदर्भ में समझ में आने वाली बात हो सकती है, लेकिन शादी का वादा, लंबे और अनिश्चितकाल तक यौन संबंध बनाने के लिए प्रलोभन नहीं माना जा सकता।’’अदालत ने कहा कि आरोप ‘‘बेबुनियाद’’ हैं और संदेह से परे साबित नहीं हुए हैं तथा महिला की गवाही विश्वास न करने योग्य और त्रुटिपूर्ण है।
आदेश में कहा गया कि न्यायाधीश इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि आरोपी ने पीड़िता के साथ उसकी इच्छा और सहमति के विरुद्ध जबरन शारीरिक संबंध नहीं बनाए, बल्कि इसमें उसकी सहमति थी।
इसमें कहा गया, ‘‘यह स्पष्ट है कि उसके (शिकायतकर्ता) साथ बलात्कार का कोई अपराध नहीं हुआ है और वह आरोपी के साथ रहना चाहती थी, हालांकि, कुछ परिस्थितियों के कारण, उनका रिश्ता सफल नहीं हो सका।’’
अदालत ने पाया कि यह ‘‘अजीब’’ बात है कि महिला ने अपने परिवार को अपनी आपबीती नहीं बताई और इसके बजाय उस व्यक्ति के साथ एक पर्वतीय पर्यटन स्थल पर चली गई।
आदेश में कहा गया, ‘‘यह बहुत अजीब बात है कि 13 फरवरी को (कथित) बलात्कार के बावजूद, पीड़िता आरोपी के साथ अकेले मनाली जाने के लिए सहमत हो गई और उसके साथ उसी कमरे में रही, जहां आरोपी ने उसके साथ फिर से बलात्कार किया और वह गर्भवती भी हो गई, लेकिन उसने अपने परिवार को इस बारे में नहीं बताया।’’
इसमें कहा गया कि गर्भावस्था और गर्भपात के आरोप किसी भी वैज्ञानिक या चिकित्सा साक्ष्य से साबित नहीं हुए।
अदालत ने कहा कि वर्ष 2015 में आरोपी द्वारा शादी से इनकार किए जाने के बाद महिला की दूसरी गर्भावस्था के बारे में बयान भी असंगत पाया गया।