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अदालत ने दुष्कर्म के मामले में व्यक्तिगत पेशी से छूट के लिए डॉक्टर की याचिका खारिज की

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नयी दिल्ली: 12 अप्रैल (ए) राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने शादी का वादा कर सहकर्मी से दुष्कर्म करने के मामले में आरोपी एवं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डॉक्टर की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें व्यक्तिगत पेशी से स्थायी छूट देने का अनुरोध किया गया था।

अदालत ने कहा कि अर्जी को स्वीकार करने से शिकायतकर्ता का आपराधिक न्याय प्रणाली में विश्वास खत्म हो जाएगा, जबकि आरोपी की उपस्थिति से उसे कोई अनावश्यक परेशानी नहीं होगी।अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश सुगंधा अग्रवाल न्यूरोसर्जरी के प्रोफेसर डॉ. दीपक गुप्ता की याचिका पर सुनवाई कर रही थीं, जिसके खिलाफ हौज खास पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (दुष्कर्म), 377 (कुकर्म), 313 (महिला की सहमति के बिना गर्भपात कराना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज किया था।

हाल ही में एक आदेश में, अदालत ने डॉ गुप्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि उन्हें अदालत की कार्यवाही में भाग लेने के लिए बाह्य रोगी विभाग (ओपीडी) में आने वाले मरीजों को छोड़ना पड़ा और गंभीर हालत वाले रोगियों के ऑपरेशन टालने पड़े।

अदालत ने कहा, ‘‘बेशक, आरोपी एक प्रोफेसर भी है, छात्रों को पढ़ाता है, संगोष्ठी और सम्मेलनों में भाग लेता है, जिससे पता चलता है कि अदालत की सुनवाई के अलावा, आरोपी को अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए विभिन्न जगहों की यात्रा करनी पड़ती है और उस समय भी वह अस्पताल से अनुपस्थित रहता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता कि उसे अदालत की सुनवाई में उपस्थित होना है, वह अपने मरीजों के लिए उपलब्ध नहीं रहेगा।’’

अदालत ने कहा कि सुनवाई की तारीख पहले ही बता दी गई थी और आरोपी के पास ऑपरेशन का कार्यक्रम निर्धारित करने के लिए पर्याप्त समय था और उसे अंतिम समय में कार्यक्रम में बदलाव कर या रद्द कर मरीजों को परेशान नहीं करना चाहिए था।

अदालत ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में आरोपी के खिलाफ गंभीर आरोप हैं, जिसमें शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि इतना प्रतिष्ठित डॉक्टर होने के बावजूद उसने शादी का झूठा वादा करके उसके साथ बलात्कार किया।’’

इसने कहा, ‘‘इन परिस्थितियों में, यदि अर्जीकर्ता को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से स्थायी छूट दी जाती है, तो इससे आपराधिक न्याय प्रणाली में शिकायतकर्ता का विश्वास टूट जाएगा, जबकि सुनवाई की प्रत्येक तारीख पर अदालत में आरोपी की उपस्थिति से उसे कोई अनावश्यक परेशानी नहीं होगी। इसलिए, अर्जी को खारिज किया जाता है।’’

इस बात पर गौर करते हुए कि दिल्ली पुलिस ने एक पूरक आरोपपत्र दाखिल किया है, अदालत ने आरोपों पर दलीलें पेश करने के लिए 16 अप्रैल की तारीख तय की।एक मजिस्ट्रेट अदालत ने इस साल 23 जनवरी को डॉक्टर के खिलाफ आरोपों का संज्ञान लिया था।

दुष्कर्म की शिकायत जुलाई 2023 में दर्ज कराई गई थी, जिसमें डॉक्टर पर दुष्कर्म सहित कई आरोप लगाए गए थे।

शिकायतकर्ता द्वारा आरोपी और उसके सहयोगियों की तरफ से धमकियां दिए जाने की शिकायत के बाद दिसंबर 2024 में एक और मामला दर्ज किया गया था।

मामले के संबंध में तीसरी प्राथमिकी इस साल 14 फरवरी को दर्ज की गई, जब एम्स की 39 वर्षीय चिकित्सक ने फिर से धमकियां मिलने का आरोप लगाया।

उसने आरोप लगाया कि अस्पताल जाते समय उसे धमकी भरे कॉल आए।

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