नयी दिल्ली: 10 जुलाई (ए) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक याचिकाकर्ता को अवमानना का दोषी पाते हुए सजा के तौर पर उसे अदालत की कार्यवाही समाप्त होने तक वहीं बैठे रहने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता ने अनधिकृत निर्माण का आरोप लगाते हुए एक याचिका दाखिल की थी, जिसे वापस लेने के लिए वह दूसरे पक्ष से रुपये लेने को तैयार हो गया था और इसलिए उसे अवमानना का दोषी पाया गया।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि 62 वर्षीय याचिकाकर्ता ने ‘अपने निजी लाभ के लिए न्यायिक प्रणाली का फायदा उठाने की कोशिश’ के रूप में अदालत का रुख किया। अदालत ने उसे दिल्ली उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति के खाते में एक लाख रुपये जमा करने को भी कहा है।
अदालत ने कहा कि वह अवमानना के दोषी की चिकित्सा स्थिति और उम्र के कारण सजा पर ‘नरम रुख’ अपना रही है। आरोपी ने अपने आचरण के लिए अदालत से माफी भी मांगी।
उच्च न्यायालय ने कहा कि अवमानना का कानून अदालत के अधिकार और गरिमा की रक्षा के लिए कार्य करता है और याचिकाकर्ता को न्यायालय की अवमानना अधिनियम की धारा 12 के तहत अदालत की अवमानना का दोषी पाया है।
पीठ ने पांच जुलाई को पारित अपने आदेश में कहा, “बात यह है कि अवमानना का दोषी रिट याचिका वापस लेने के लिए प्रतिवादियों से बातचीत कर उनसे रुपये ऐंठने के लिए तैयार था, इसलिए अदालत इस कृत्य को अवमाननापूर्ण मानती है। यह न्यायालय की प्रक्रिया की घोर अवहेलना और दुरुपयोग दर्शाता है, जिसे अदालत माफ नहीं कर सकती।”
पीठ में न्यायमूर्ति अमित शर्मा भी शामिल थे।
अदालत ने आदेश दिया, “न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वाले किसी भी व्यक्ति के ऐसे आचरण को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता…इसलिए अवमानना करने वाले व्यक्ति को आज (शुक्रवार) अदालत की कार्यवाही समाप्त होने तक अदालत में ही बैठे रहने की सजा सुनाई जाती है। इसके अलावा दोषी को दिल्ली उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति में एक लाख रुपये की राशि जमा करनी होगी।”
अवमानना के दोषी ने 2021 में बुराड़ी में कुछ जमीनों पर अनधिकृत निर्माण के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए एक याचिका दाखिल की थी।
इसके बाद, अनधिकृत निर्माण करने वाले पक्षों में से एक कथित पक्ष ने दावा किया कि याचिकाकर्ता ने रिट याचिका वापस लेने के लिए 50 लाख रुपये की मांग की।