नयी दिल्ली, तीन जून (ए) दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऑनलाइन पोर्टल ‘इंडियन कानून’ को एक मामले के फैसले में उस व्यक्ति का नाम छिपा देने का निर्देश दिया है जिसे बलात्कार के आरोप से बरी कर दिया गया है।.
अदालत ने 29 वर्षीय इस व्यक्ति की अर्जी पर यह अंतरिम आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के 2018 के फैसले में उसका नाम छिपा देने की गुजारिश की है।.
उसने कहा कि इस मामले में बरी हो जाने के बाद भी उसे इंटरनेट पर फैसले के उपलब्ध होने से काफी कुछ झेलना पड़ा है तथा वेब पर महज तलाश करने भर से उसका नाम आ जाता है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत का फैसला खंगालने पर पता चलता है कि याचिकाकर्ता के विरूद्ध संदेह से परे मामला नहीं बनता है तथा निचली अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय नहीं है।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने 29 मई को जारी एक आदेश में कहा, ‘‘ ऐसी स्थिति में, चूंकि फैसला इंडियन कानून वेबसाइट पर आसानी से उपलब्ध है तथा ‘गूगल सर्च’ समेत किसी भी ‘वेब सर्च’ पर वह सुलभ हो जाता है तो अगली सुनवाई की तारीख तक यह निर्देश दिया जाता है कि इंडियन कानून पोर्टल पर याचिकाकर्ता का नाम छिपा दिया जाए। असल में, यदि उक्त फैसला वेब पर या गुगल पर ढूढने से नजर आता है तो नाम नहीं नजर नहीं आए।’’
उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि भारतीय कानूनों के सर्च इंजन ‘‘इंडियन कानून’’ फैसले में एक सप्ताह में याचिकाकर्ता का नाम छिपा दे।
याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत दिवान ने कहा कि निचली अदालत के फैसले में नाम नजर आने की वजह से उनके मुवक्किल की निजी एवं पारिवारिक जिंदगी प्रभावित हो