राष्ट्रपति के विचारार्थ विधेयकों को रोककर रखना गैरकानूनी और मनमाना: शीर्ष न्यायालय

राष्ट्रीय
Spread the love

नयी दिल्ली: आठ अप्रैल (ए) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि उनके द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ रोककर रखना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन होने के साथ ही गैरकानूनी और मनमाना भी है।तथा इसलिए इसे खारिज किया जाता है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘10 विधेयकों को उस तारीख से स्वीकृत माना जाएगा जिस दिन इन्हें राज्यपाल के समक्ष पुन: प्रस्तुत किया गया था।’’शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यपाल को सावधानी बरतनी चाहिए कि राज्य विधानसभा के सामने अवरोध पैदा करके जनता की इच्छा का दमन नहीं हो।

पीठ ने कहा, ‘‘राज्य विधानसभा के सदस्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अनुरूप राज्य की जनता द्वारा चुने जाने के नाते राज्य की जनता की भलाई सुनिश्चित करने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हैं।’’

अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल के पास कोई विवेकाधिकार नहीं होता और उन्हें मंत्रिपरिषद की सहायता एवं सलाह पर अनिवार्य रूप से कार्रवाई करनी होती है।

संविधान का अनुच्छेद 200 विधेयकों को स्वीकृति से संबंधित है।

पीठ ने कहा कि राज्यपाल सहमति को रोक नहीं सकते और ‘पूर्ण वीटो’ या ‘आंशिक वीटो’ (पॉकेट वीटो) की अवधारणा नहीं अपना सकते।

उसने कहा कि राज्यपाल एक ही रास्ता अपनाने के लिए बाध्य होते हैं- विधेयकों को स्वीकृति देना, स्वीकृति रोकना और राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखना।

पीठ ने कहा कि वह विधेयक को दूसरी बार राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किए जाने के बाद उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखे जाने के पक्ष में नहीं है।

उसने कहा कि राज्यपाल को दूसरे दौर में उनके समक्ष प्रस्तुत किए गए विधेयकों को मंजूरी देनी चाहिए, अपवाद केवल तब रहेगा जब दूसरे चरण में भेजा गया विधेयक पहले से अलग है।