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मथुरा शाही ईदगाह विवाद : मस्जिद समिति की याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने मार्च तक सुनवाई टाली

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नयी दिल्ली: 15 जनवरी (ए) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद में मस्जिद प्रबंधन समिति की अपील की सुनवाई मार्च तक टाल दी।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि उसे आज एक और मामले की सुनवाई करनी है और वह मस्जिद समिति की याचिका पर विचार नहीं कर सकती।शीर्ष अदालत बुधवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ विभिन्न याचिकाओं की संयुक्त सुनवाई कर रही थी, जिनमें पश्चिम बंगाल के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में 25,753 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को अमान्य करार दिया गया था।

न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, ‘‘आज हम एक अन्य मामले में सुनवाई कर रहे हैं। याचिका को मार्च, 2025 में सूचीबद्ध करें।’’

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने पिछले साल एक अगस्त को मथुरा में मंदिर-मस्जिद विवाद से संबंधित 15 मामलों की सुनवाई को चुनौती देने वाली शाही मस्जिद ईदगाह समिति की याचिका खारिज कर दी थी और फैसला सुनाया था कि शाही ईदगाह के ‘‘धार्मिक चरित्र’’ को निर्धारित करने की आवश्यकता है।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल नौ दिसंबर को इस मामले में अंतिम सुनवाई शुरू की थी।

हिंदू पक्षों में से एक ने दलील दी थी कि मस्जिद समिति इस मामले में एकल न्यायाधीश के आदेश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ में चुनौती दे सकती थी।

संबंधित पक्षकार के वकील बरुण सिन्हा ने कहा कि मस्जिद समिति की याचिका वर्तमान चरण में शीर्ष अदालत में सुनवाई योग्य नहीं है।

वकील ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के नियमों का उल्लेख करते हुए दलील दी, ‘‘इलाहाबाद उच्च न्यायालय नियमावली के अध्याय-आठ के मद्देनजर, उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष एक विशेष अपील सुनवाई योग्य होगी।’’

उन्होंने मस्जिद समिति की अपील खारिज करने का अनुरोध करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय की एकल पीठ के आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील सुनवाई योग्य नहीं है और उच्च न्यायालय (की खंडपीठ) में ही अपील दायर की जानी चाहिए थी।

समिति ने कहा कि कृष्ण जन्मभूमि मंदिर और उससे सटी मस्जिद के विवाद पर हिंदू वादियों द्वारा दायर मुकदमे उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम का उल्लंघन करते हैं और इसलिए ये सुनवाई योग्य नहीं हैं।

वर्ष 1991 का यह अधिनियम देश की स्वतंत्रता के दिन मौजूद किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने पर रोक लगाता है। हालांकि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को इसके दायरे से बाहर रखा गया था।

हिंदू पक्ष की ओर से दायर किए गए मामलों में औरंगजेब युग की मस्जिद को ‘‘हटाने’’ की मांग की गई है। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह (शाही ईदगाह मस्जिद) एक मंदिर के विध्वंस के बाद बनाई गई थी। वहां मंदिर पहले से मौजूद था।

उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने कहा था कि 1991 के अधिनियम में ‘‘धार्मिक चरित्र’’ शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है और ‘‘विवादित’’ स्थल- मंदिर और मस्जिद- का दोहरा धार्मिक चरित्र नहीं हो सकता है

अदालत ने कहा था, ‘‘या तो यह स्थान मंदिर है या मस्जिद। इसलिए, मुझे लगता है कि 15 अगस्त 1947 को विवादित स्थान का धार्मिक चरित्र कैसा था यह दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्यों से निर्धारित किया जाना चाहिए।’’

मथुरा विवाद वाराणसी में चल रहे कानूनी विवाद की तरह है, जहां ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर एक दूसरे के बगल में स्थित हैं।

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