प्रयागराज: 16 जनवरी (ए) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि मां पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे की स्वाभाविक अभिभावक है और उसे बच्चे को अपने पास रखने की अनुमति दी जाएगी।
न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति डी. रमेश की पीठ ने कहा, “महज इसलिए कि पति-पत्नी के अलग होने के समय मां को उसकी बेटी से वंचित कर दिया गया और बेटी कुछ समय से अपने पिता के साथ रह रही है इसलिए मां को बेटी देने से मना करना सही नहीं है।”पीठ ने कहा, “चार वर्षीय बच्ची की विभिन्न शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक जरूरतों का उसकी मां की देखरेख में बेहतर संरक्षण होगा।”
अदालत ने बच्ची के पिता द्वारा दायर अपील खारिज कर दी।
अपीलकर्ता अमित धामा ने कुटुम्ब अदालत के 31 अगस्त 2024 के फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में अपील की थी।
अधीनस्थ न्यायालय ने चार वर्षीय बच्ची को उसकी मां को सौंपने का एकपक्षीय आदेश पारित किया था।
अपीलकर्ता के वकील ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि पिता अपनी बच्ची की देखभाल कर रहे हैं और बच्ची को मां को सौंपने की कोई जरूरत नहीं है।
दंपति का विवाह 2010 में हुआ था और इनका एक बेटा व एक बेटी है।
पति ने तलाक की अर्जी दाखिल की थी और पत्नी ने अपनी बेटी को अपने पास रखने की अर्जी दायर की थी, जिसमें दलील दी गई थी कि बेटा एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहा है और पिता उसका खर्च उठा रहे हैं जबकि बेटी अपने पिता के पास ही रह रही है।
अदालत ने कहा, “मां स्नातक है और अकेली रह रही है तथा मां द्वारा बेटी को नुकसान पहुंचाने का कोई आरोप नहीं लगाया गया है। मां अपनी बेटी की विभिन्न जरूरतें पूरी कर सकती है।”
पीठ ने कुटुम्ब अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए 10 जनवरी को अपने आदेश में दोनों पक्षों को बेटी और बेटे से मिलने का अधिकार दिया।