पटना: चार जून (ए) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लोकसभा में स्पष्ट बहुमत से पीछे रह जाने के कारण इसबार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाएंगे।
जनता दल यूनाइटेड (जदयू) प्रमुख नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में आने से पहले विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
भाजपा के साथ नीतीश कुमार का रिश्ता 1990 के दशक के मध्य में उस समय से चला आ रहा है, जब कुमार ने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के खिलाफ विद्रोह के बिगुल फूंकते हुए अनुभवी समाजवादी नेता दिवंगत जॉर्ज फर्नांडीस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई थी।
वर्ष 1998 से 2004 तक देश पर शासन करने वाली भाजपा के साथ गठबंधन के दौरान कुमार ने दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में कृषि, रेलवे और भूतल परिवहन जैसे प्रमुख विभाग संभाले थे।
शरद यादव के गुट लोक शक्ति और समता पार्टी का बाद में विलय कर जदयू बनाने वाले कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन में 2005 में बिहार विधानसभा चुनाव जीता और पहली बार मुख्यमंत्री बने।
अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के प्रति सजग रहने वाले कुमार को भाजपा के भीतर नरेन्द्र मोदी की बढ़ती पकड़ ने आशंकित कर दिया और उन्होंने 2002 के गुजरात दंगों को लेकर 2013 में भाजपा के साथ अपनी 17 साल पुरानी साझेदारी को समाप्त करते हुए संबंध तोड़ लिए।
वर्ष 2014 में लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी की पराजय की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए कुमार ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया था और अपने पुराने विश्वासपात्र जीतन राम मांझी को यह कुर्सी सौंप दी।
बाद के दौर में राजनीतिक अवसरवादिता के कारण जदयू सुप्रीमो को दो मौकों पर प्रसाद के राजद के साथ अल्पकालिक गठबंधन करना पड़ा लेकिन दोनों बार उनकी अचानक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में वापसी हुई।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहने वाले कुमार बार-बार पाला बदलने के कारण ही सत्ता में बने रहने में कामयाब रहे लेकिन इससे उनकी लोकप्रियता में कमी आई है।
पिछली बार स्पष्ट बहुमत के साथ केंद्र में सत्ता में आयी भाजपा के पिछली सरकार में सम्मानजनक प्रतिनिधित्व नहीं दिए जाने से नाखुश रहे नीतीश कुमार को इसबार नाराज करना शायद जोखिम भरा कदम होगा ।