नयी दिल्ली: 23 जनवरी (ए) दिल्ली उच्च न्यायालय ने पत्नी के ‘तालमेल नहीं बैठाने के रवैये’ के कारण मानसिक क्रूरता सहने पर पति के पक्ष में तलाक का आदेश दे दिया और कहा कि इस मामले में कुछ हासिल होने वाला नहीं है।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को जारी फैसले में पति की याचिका पर तलाक से इनकार करने के एक कुटुम्ब अदालत के आदेश को रद्द कर दिया और उसकी अपील को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘जीवनसाथी के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला अनुचित और निंदनीय आचरण मानसिक क्रूरता हो सकती है।’’दंपति का विवाह 2001 में हुआ था और 16 साल साथ रहने के बाद वे अलग हो गए थे। पति ने वकील रावी बीरबल के माध्यम से पत्नी पर क्रूरता का आरोप लगाया, वहीं पत्नी ने दावा किया कि पति और उसके परिवार ने दहेज मांगा था।
पीठ में न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा भी शामिल रहीं। पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच मनमुटाव, एक वैवाहिक रिश्ते में होने वाला आम मनमुटाव नहीं है बल्कि व्यापक रूप से देखा जाए तो ये पति के प्रति क्रूरता पूर्ण कृत्य हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि दोनों के बीच शादी के पहले 14 साल में यदि कोई कानूनी विवाद नहीं हुआ तो इसका मतलब यह नहीं है कि सब कुछ बहुत बढ़िया चल रहा था । बल्कि इससे केवल यही पता चलता है कि पति ने किसी न किसी तरीके से रिश्ते को बचाए रखने की कोशिश की।
अदालत ने कहा कि पत्नी के ये बेबुनियाद आरोप कि उसके पति के अपनी सहकर्मियों और महिला मित्रों के साथ अवैध संबंध थे, पति के दिमाग पर खराब असर डालने वाले थे और यह मानसिक क्रूरता है।
अदालत ने कहा,‘‘ इसलिए हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि याचिकाकर्ता अपने वैवाहिक जीवन में मानसिक क्रूरता का शिकार रहा और इस मामले को घसीटने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। इसलिए हम आक्षेपित निर्णय को रद्द करते हुए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(आईए) के तहत क्रूरता के आधार पर तलाक देते हैं।’