नयी दिल्ली: चार मार्च (ए) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि देश की अधीनस्थ अदालतों में पर्याप्त न्यायाधीश नहीं हैं जो यौन अपराधों से बच्चों की रक्षा (पॉक्सो) कानून के तहत बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से निपटने के लिए प्रत्येक जिले में एक विशेष अदालत स्थापित करने जैसे उसके निर्देशों को लागू कर सकें।
न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की पीठ स्वत: संज्ञान लेकर 2019 के एक मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसका शीर्षक है, ‘‘बच्चों के साथ बलात्कार की घटनाओं की संख्या में चिंताजनक वृद्धि के संबंध में।’’शीर्ष अदालत ने 2019 में कई निर्देश पारित किए, जिसमें बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के मामलों से विशेष रूप से निपटने के लिए पॉक्सो अधिनियम के तहत 100 से अधिक प्राथमिकी वाले प्रत्येक जिले में केंद्र द्वारा वित्त पोषित नामित अदालत की स्थापना करना शामिल था। न्यायमूर्ति त्रिवेदी ने मंगलवार को कहा कि जिला अदालतों में रिक्तियों को ध्यान में रखते हुए कुछ निर्देश अधूरे रह गए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास जिला अदालतों में न्यायाधीश नहीं हैं। कई सालों से रिक्तियां खाली पड़ी हैं। हमें जिला न्यायपालिका में पर्याप्त न्यायाधीश नहीं मिल रहे हैं।’’
न्यायाधीश ने गुजरात का उदाहरण दिया जहां ऐसे मामलों से निपटने के लिए पर्याप्त न्यायाधीश नहीं हैं। पीठ ने एक रिपोर्ट पर गौर किया था, जिसमें संकेत दिया गया था कि समय पर पॉक्सो मामले की सुनवाई पूरा करने में सबसे बड़ी बाधा फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट प्राप्त करने में देरी है।
रिपोर्ट तैयार करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी ने मामले में न्याय मित्र के रूप में अदालत की सहायता की।
बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के आंकड़ों का हवाला देते हुए, इसने कहा कि एक जनवरी से 30 जून, 2019 तक पूरे भारत में 24,212 प्राथमिकी दर्ज की गईं। 24,000 से अधिक मामलों में से 11,981 की अब भी पुलिस द्वारा जांच की जा रही है और 12,231 मामलों में पुलिस ने आरोप पत्र दायर किया है।