नयी दिल्ली: सात अप्रैल (ए) दीवानी मामलों से संबंधित विवादों में राज्य पुलिस की ओर से प्राथमिकी दर्ज करने से निराश उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि ‘‘उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है’’ क्योंकि ऐसे मामलों में आपराधिक कानून को ‘‘दिन-रात’’ लागू किया जाता है।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है। दीवानी मामलों को आपराधिक मामले में बदलना स्वीकार्य नहीं है।’’पीठ ने उस वक्त नाराजगी जताई जब एक वकील ने कहा कि प्राथमिकी इसलिए दर्ज की गई, क्योंकि दीवानी विवादों के निपटारे में लंबा समय लगता है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यूपी में जो हो रहा है, वह गलत है। हर रोज दीवानी मामलों को आपराधिक मामलों में बदला जा रहा है। यह बेतुका है, केवल पैसे न देने को अपराध नहीं बनाया जा सकता।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम आईओ (जांच अधिकारी) को कठघरे में आने का निर्देश देंगे। आईओ गवाह के कठघरे में खड़े होकर आपराधिक मामला बनाएं…यह आरोपपत्र दाखिल करने का तरीका नहीं है। आईओ को सबक सीखने दें।’’
पीठ कहा, ‘‘सिर्फ इसलिए कि दीवानी मामलों में लंबा समय लगता है, आप प्राथमिकी दर्ज कर देंगे और आपराधिक कानून लगा देंगे?’’
शीर्ष अदालत ने नोएडा के सेक्टर-39 स्थित संबंधित थाने के जांच अधिकारी को निचली अदालत में गवाह के रूप में उपस्थित होने और मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का औचित्य बताने का निर्देश दिया।
पीठ आरोपी देबू सिंह और दीपक सिंह की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने से इनकार किए जाने के खिलाफ वकील चांद कुरैशी के माध्यम से दायर की गई थी।
शीर्ष अदालत ने नोएडा की निचली अदालत में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी, लेकिन कहा कि उनके खिलाफ चेक बाउंस का मामला जारी रहेगा।
नोएडा में दोनों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात), 506 (आपराधिक धमकी) और 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।