Site icon Asian News Service

महिलाओं की भलाई के लिए कानून में सख्त प्रावधान, विवाह कोई व्यवसाय नहीं: उच्चतम न्यायालय

Spread the love

नयी दिल्ली: 19 दिसंबर (ए) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि कानून के सख्त प्रावधान महिलाओं की भलाई के लिए हैं न कि उनके पतियों को ‘दंडित करने, धमकाने, उन पर हावी होने या उनसे जबरन वसूली करने’ के लिए।

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने कहा कि हिंदू विवाह एक पवित्र प्रथा है, जो परिवार की नींव है, न कि कोई व्यावसायिक समझौता।पीठ ने कहा कि विशेष रूप से वैवाहिक विवादों से संबंधित अधिकांश शिकायतों में दुष्कर्म, आपराधिक धमकी और विवाहित महिला से क्रूरता करने सहित भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं को लगाने के लिए शीर्ष अदालत ने कई मौकों पर फटकार लगायी है।पीठ ने कहा, “महिलाओं को इस बात को लेकर सावधान रहने की जरूरत है कि उनके हाथों में कानून के ये सख्त प्रावधान उनकी भलाई के लिए हैं, न कि उनके पतियों को दंडित करने, धमकाने, उन पर हावी होने या उनसे जबरन वसूली करने के साधन के रूप में हैं।”

पीठ ने यह टिप्पणी अलग-अलग रह रहे एक दंपति के विवाह को समाप्त करते हुए कहा कि यह रिश्ता पूरी तरह से टूट चुका है।

पीठ ने कहा, “आपराधिक कानून के प्रावधान महिलाओं की सुरक्षा और सशक्तीकरण के लिए हैं लेकिन कभी-कभी कुछ महिलाएं इनका इस्तेमाल ऐसे उद्देश्यों के लिए करती हैं, जिनके लिए वे कभी नहीं होते।”

इस मामले में पति को एक महीने के भीतर अलग रह रही पत्नी को उसके सभी दावों के पूर्ण और अंतिम निपटान के रूप में स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 12 करोड़ रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया गया था।

पीठ ने हालांकि उन मामलों पर टिप्पणी की, जहां पत्नी और उसके परिवार इन गंभीर अपराधों के लिए आपराधिक शिकायत को बातचीत के लिए एक मंच के रूप में और पति व उसके परिवार से अपनी मांगों को पूरा करने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पुलिस कभी-कभी चुनिंदा मामलों में कार्रवाई करने में जल्दबाजी करती है और पति या यहां तक ​​कि उसके रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लेती है, जिसमें वृद्ध और बिस्तर पर पड़े माता-पिता व दादा-दादी भी शामिल होते हैं।

पीठ ने कहा कि वहीं अधीनस्थ न्यायालय भी प्राथमिकी में ‘अपराध की गंभीरता’ के कारण आरोपी को जमानत देने से परहेज करते हैं।

Exit mobile version