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उच्चतम न्यायालय ने बच्चे की हत्या के मामले में महिला को बरी किया

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नयी दिल्ली: दो मार्च (ए) उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा की उस महिला को बरी कर दिया है, जिसे साढ़ चार वर्षीय एक बच्चे की हत्या के 23 वर्ष पुराने मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

न्यायमूर्ति एम.एम.सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने अभियोजन पक्ष के बयान में त्रुटि पाई तथा गंडासी (कुल्हाड़ी) की बरामदगी के आधार पर, निचली अदालत के दोषसिद्धि के निष्कर्ष पर पहुंचने को गलत पाते हुए महिला को बरी कर दिया। महिला की सजा को उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा था।पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने संबंधी महिला की अपील को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘हमारे विचार से, दोनों न्यायालयों ने केवल हथियार की बरामदगी पर पर्याप्त भरोसा करके गलती की है, जबकि शव बहुत पहले पाया गया था. इस प्रकार, हम अपीलकर्ता को संदेह का लाभ देने के लिए बाध्य हैं.’’ पीठ ने आरोपी की ओर से पेश हुए वकील की इस दलील से सहमति जताई कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य से जुड़े मामले में मकसद कुछ हद तक प्रासंगिक होता है. पीठ ने 20 फरवरी को दिये अपने आदेश में कहा, ‘‘इस मामले में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे पता चले कि बच्चे को अंतिम बार अपीलकर्ता के साथ देखा गया था. केवल ‘गंडासी’ के रूप में भौतिक वस्तु की बरामदगी, अपीलकर्ता को दोषी ठहराने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता.’’इसने कहा कि बरामद की गई वस्तु पर अपीलकर्ता की कोई अंगुली का निशान नहीं है और किसी भी मामले में, स्पष्ट रूप से यह दर्शाने के लिए साक्ष्य अपर्याप्त हैं कि बरामद हथियार का इस्तेमाल अपराध करने के लिए किया गया था. पीठ ने कहा कि शव की बरामदगी भी अपीलकर्ता के कहने पर नहीं की गई थी. अभियोजन पक्ष के अनुसार, हत्या 11 दिसंबर 2002 को हुई थी और 12 दिसंबर 2002 को शिकायत दर्ज कराई गई थी कि शिकायतकर्ता का साढ़े चार साल का बेटा लापता हो गया है.

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