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सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव को OBC आरक्षण के साथ कराने की दी इजाजत

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नई दिल्ली, 27 मार्च (ए)। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उत्तर प्रदेश में शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का रास्ता साफ कर दिया और राज्य निर्वाचन आयोग को ओबीसी कोटे के साथ दो दिन के भीतर इस संबंध में अधिसूचना जारी करने की अनुमति दे दी। .

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा, ‘‘इस अदालत ने 4 जनवरी, 2023 के एक आदेश में उल्लेख किया कि इस अदालत के फैसलों के मद्देनजर, उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना के लिए दिसंबर 2022 में एक अधिसूचना जारी की। हालांकि, आयोग का कार्यकाल छह महीने का था, लेकिन इसे 31 मार्च, 2023 तक अपना कार्य पूरा करना था।’’.इसने कहा, ‘सॉलिसिटर जनरल ने सूचित किया कि रिपोर्ट 9 मार्च, 2023 को मंत्रिमंडल को सौंप दी गई है। स्थानीय निकाय चुनावों को अधिसूचित करने की प्रक्रिया चल रही है और यह दो दिन में की जाएगी। याचिका का निस्तारण किया जाता है। इस आदेश से संबंधित निर्देश मिसाल के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए नहीं है।’

शीर्ष अदालत ने चार जनवरी को, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए बिना किसी आरक्षण के शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी।

इसने यह भी आदेश दिया था कि स्थानीय निकाय चुनावों के लिए ओबीसी कोटा देने से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा नियुक्त समिति को पहले निर्धारित किए गए छह महीने के बजाय तीन महीने (31 मार्च तक) के भीतर अपनी कवायद पूरी करनी होगी।

राज्य सरकार ने कहा था कि उसने स्थानीय निकायों में विभिन्न पिछड़ी जातियों के राजनीतिक प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखते हुए कोटा के मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए शीर्ष अदालत के फैसलों के अनुसरण में उत्तर प्रदेश राज्य स्थानीय निकाय समर्पित पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया था।

शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार की इस दलील पर संज्ञान लिया था कि हालांकि नवनियुक्त आयोग का कार्यकाल छह महीने का है, लेकिन यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाएगा कि 31 मार्च को या उससे पहले यह कवायद जल्द से जल्द पूरी हो जाए।

इसने उन लोगों को नोटिस जारी किया था, जिन्होंने राज्य सरकार की अधिसूचना के खिलाफ उच्च न्यायालय का रुख किया था।

इससे पहले, राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के 27 दिसंबर, 2022 के आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत का रुख किया था। अपील में कहा गया था कि उच्च न्यायालय पिछले साल पांच दिसंबर को जारी मसौदा अधिसूचना को रद्द नहीं कर सकता, जिसके तहत शहरी निकाय चुनावों में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और महिलाओं के अलावा ओबीसी के लिए सीट आरक्षण प्रदान किया गया था।

अपील में कहा गया था कि ओबीसी संवैधानिक रूप से संरक्षित एक वर्ग है और उच्च न्यायालय ने मसौदा अधिसूचना को रद्द करने में गलती की है।

उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी को आरक्षण प्रदान करने के लिए सभी मुद्दों पर विचार करने के वास्ते पांच सदस्यीय आयोग नियुक्त किया था।

अधिसूचना के मसौदे के मुताबिक, महापौर पद की चार सीट-अलीगढ़, मथुरा-वृंदावन, मेरठ और प्रयागराज- ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थीं। इनमें अलीगढ़ और मथुरा-वृंदावन में महापौर के पद ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षित थे।

इसके अलावा, 200 नगरपालिका परिषदों में अध्यक्षों के लिए 54 सीट ओबीसी के लिए आरक्षित थीं, जिनमें 18 महिलाओं के लिए थीं। 545 नगर पंचायतों में अध्यक्षों की सीट में से 147 ओबीसी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित थीं, जिनमें 49 महिलाओं के लिए थीं

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