नयी दिल्ली, तीन नवंबर (ए) प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने वकीलों से नये मामलों में स्थगन का अनुरोध नहीं करने की अपील करते हुए शुक्रवार को कहा कि वह नहीं चाहते कि उच्चतम न्यायालय ‘‘तारीख-पे-तारीख’’ अदालत बन जाए, क्योंकि इससे (स्थगन से) अदालतों पर नागरिकों का विश्वास घटता है। .
न्यायालय में दिन की कार्यवाही शुरू होने पर, प्रधान न्यायाधीश ने नये मामलों में वकीलों द्वारा स्थगन का अनुरोध किये जाने के मुद्दे पर कहा कि पिछले दो महीने में वकीलों ने 3,688 मामलों में स्थगन का अनुरोध किया है।प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘जब तक अत्यंत जरूरी नहीं हो, तब तक कृपया स्थगन का अनुरोध नहीं करें…। मैं नहीं चाहता कि यह न्यायालय ‘तारीख-पे-तारीख’ अदालत बन जाए।’’
पीठ में न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘एक ओर जहां, मामलों को सूचीबद्ध करने में तेजी दिखाई जाती है, तो वहीं दूसरी ओर, पहले उन्हें सूचीबद्ध करने के लिये अनुरोध किया जाता है और उसके बाद वे स्थगन मांगते हैं। मैं बार के सदस्यों से अनुरोध करता हूं कि जब तक वास्तव में बेहद जरूरी नहीं हो, स्थगन का अनुरोध नहीं करें। यह ‘तारीख-पे-तारीख’ अदालत नहीं बन सकती। यह हमारी अदालतों पर नागरिकों के विश्वास को घटाता है।’’
‘‘तारीख-पे-तारीख’’ 1993 में रिलीज हुई बॉलीवुड फिल्म ‘दामिनी’ का एक लोकप्रिय संवाद है। फिल्म के एक दृश्य में, अभिनेता सनी देओल ने इस संवाद के जरिये अदालतों में मुकदमों के स्थगन की संस्कृति पर रोष जताया था।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि अब वकीलों के संगठनों की मदद से शीर्ष न्यायालय में, मामला दायर होने के बाद नये मामलों को सूचीबद्ध करने के समय में काफी कमी आई है।
उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि पीठों के समक्ष मामले सूचीबद्ध कराने के बाद, वकील स्थगन का अनुरोध करते हैं, जो बाहर की दुनिया को एक गलत संकेत देता है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं देख रहा हूं कि मामला दायर होने की अवधि से इसके सूचीबद्ध होने के बीच का समय घट रहा है। यह सब हम एससीबीए (सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और एससीएओआरए (सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन) के सहयोग के बिना नहीं कर सकते थे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘तीन नवंबर को, हमारे पास 178 स्थगन पर्चियां हैं। अक्टूबर से, प्रत्येक हफ्ते सोमवार और शुक्रवार को हर दिन 150 स्थगन पर्चियां थीं, और सितंबर से अक्टूबर तक 3,688 स्थगन पर्चियां वितरित की गईं…। यह मामलों की सुनवाई में तेजी लाने के उद्देश्य को कमजोर करता है।’’
आंकड़ों का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सितंबर 2023 से शीर्ष न्यायालय में तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए उल्लेख किये जाने वाले 2,361 मामलों का हवाला दिया।प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि जब विषय सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हो जाते हैं, तब वकीलों द्वारा स्थगन का अनुरोध किया जाता है और यह एक विरोधाभास पैदा करता है।