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उच्चतम न्यायालय ने मंदिरों में ‘वीआईपी’ दर्शन के मामले में सुनवाई की खबरों पर नाराजगी जताई

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नयी दिल्ली: 13 दिसंबर (ए) उच्चतम न्यायालय ने देश भर के मंदिरों में ‘‘वीआईपी दर्शन’’ के लिए अतिरिक्त शुल्क वसूलने के चलन के खिलाफ एक जनहित याचिका की सुनवाई से संबंधित मीडिया की कुछ खबरों में पिछली सुनवाई को ‘‘गलत तरीके से प्रस्तुत’’ करने पर शुक्रवार को नाराजगी व्यक्त की।

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने इस मुद्दे पर विजय किशोर गोस्वामी द्वारा दायर याचिका पर पिछली बार 25 अक्टूबर को सुनवाई करते हुए कुछ टिप्पणियां की थीं।पीठ ने कहा, ‘‘पिछली बार अदालत में जो कुछ भी हुआ, उसे मीडिया में पूरी तरह से गलत तरीके से पेश किया गया।’’ प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘देखिए, कभी-कभी सुनवाई के दौरान हम कुछ सवाल पूछते हैं, तो आप यह कहने लगते हैं कि मैं यह या वह नहीं पूछ रहा हूं।’’

पीठ ने कहा कि सुनवाई के दौरान उठाए गए सवालों को मीडिया द्वारा ‘‘गलत तरीके से’’ या ‘‘बढ़ा-चढ़ाकर’’ पेश नहीं किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।

न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, ‘‘ऐसा पूरे देश में हो रहा है…जाहिर है कि आप (याचिकाकर्ता) मीडिया के पास गए। उन्हें यह पता लगाने का कोई सवाल ही नहीं है कि अदालत में क्या हो रहा है। प्रधान न्यायाधीश ने कुछ अलग-थलग टिप्पणियां कीं…और आप (इसे) ले उड़े।’’

वकील ने कहा कि पत्रकार सुनवाई पर नजर रखते हैं। अब याचिका को 27 जनवरी से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि मंदिरों में दर्शन का यह चलन संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 में निहित समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन है, क्योंकि इससे शुल्क वहन करने में असमर्थ श्रद्धालुओं के साथ भेदभाव होता है।

याचिका में मंदिर में दर्शन के लिए शीघ्र पहुंच को लेकर अतिरिक्त शुल्क वसूलने के बारे में भी कई चिंताएं जताई गई हैं। याचिका में कहा गया है कि ‘‘विशेष दर्शन’’ के लिए 400 रुपये से 500 रुपये के बीच शुल्क वसूलने से संपन्न श्रद्धालुओं और उन लोगों के बीच भेदभाव होता है जो ऐसे शुल्क वहन करने में असमर्थ हैं, विशेष रूप से वंचित महिलाएं, दिव्यांगजन और वरिष्ठ नागरिक।

याचिका में यह उल्लेख किया गया कि गृह मंत्रालय को आवेदन करने के बावजूद केवल आंध्र प्रदेश को निर्देश जारी किया गया, जबकि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश जैसे अन्य राज्यों को कोई निर्देश नहीं दिया गया। इसलिए याचिका में अतिरिक्त शुल्क लगाने को समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन घोषित करने का अनुरोध किया गया है।

याचिका में देश भर के मंदिरों के प्रबंधन और प्रशासन की देखरेख के लिए एक राष्ट्रीय बोर्ड की स्थापना की मांग भी की गई है।

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