नई दिल्ली,06 जनवरी (ए)। सुप्रीम कोर्ट ने अंतर धार्मिक विवाह के नाम पर धर्मांतरण को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में लागू ‘लव जिहाद’ कानूनों के विवादास्पद प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। हालांकि, कोर्ट विवादास्पद कानूनों की समीक्षा करने पर राजी हो गया है। सुप्रीम कोर्ट अब इन कानूनों की संवैधानिकता की जांच करेगा, यही कारण है कि कोर्ट ने राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर इस संबंध में जवाब मांगा है।
मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति वी रमासुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की खंडपीठ ने विशाल ठाकरे एवं अन्य और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सितलवाड़ के गैर-सरकारी संगठन ‘सिटीजन्स फॉर जस्टिस एंड पीस’ की याचिकाओं की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड की सरकारों को नोटिस जारी किए। , हालांकि न्यायालय ने संबंधित कानून के उन प्रावधानों पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसके तहत शादी के लिए धर्म परिवर्तन की पूर्व अनुमति को आवश्यक बनाया गया है।
सितलवाड़ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने दलील दी कि पूर्व अनुमति के प्रावधान दमनकारी हैं। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के अध्यादेश के आधार पर पुलिस ने कथित लव जिहाद के मामले में निदोर्ष लोगों को गिरफ्तार किया है। सुनवाई की शुरुआत में न्यायमूर्ति बोबडे ने याचिकाकतार्ओं को संबंधित उच्च न्यायालय जाने को कहा, लेकिन सिंह और वकील प्रदीप कुमार यादव की ओर से यह बताये जाने के बाद कि दो राज्यों में यह कानून लागू हुआ है और समाज में इससे व्यापक समस्या पैदा हो रही है। वकीलों ने दलील दी कि मध्य प्रदेश और हरियाणा जैसे अन्य राज्य भी ऐसे ही कानून बनाने पर विचार कर रहे हैं। इसके बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई को लेकर हामी भरते हुए दोनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी किये।