गोरखपुर,05 दिसम्बर (ए)। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की नालियों में बहता कीचड़ भी सोना उगल रहा है। यहां एक जगह ऐसी है, जहां कचरे में सोना बहता है. हर रोज इस कचरे में सोना तलाशने वालों की भीड़ रहती है. कचरे से मिलने वाले सोने को बेचकर 100 से अधिक परिवार अपनी आजीविका चला रहे हैं. कुछ लोग यह काम 45 साल से कर रहे हैं. इतना ही नहीं, इस काम को करने वाले बताते हैं कि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो श्मशान घाट के पास नदी से भी सोना तलाशने का काम करते हैं. गोरखपुर शहर के घंटाघर स्थित सोनारपट्टी में जेवरात की कारीगरी करने वालों की सैकड़ों दुकाने हैं. इस जगह पर कारीगरी करते वक्त सोने के छोटे कण अक्सर छिटककर कचरे में चले जाते हैं. काम करने के दौरान औजार आदि में भी छोटे कण चिपक जाते हैं. ये कण धुलाई के दौरान एसिड में मिल जाते हैं और बाद में कारीगर इन्हें खोजने पर ध्यान नहीं देते और एसिड भी फेंक देते हैं. यह एसिड बहकर नाली में चला जाता है. इसके साथ बहकर जाने वाले सोने के कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें दोबारा खोजना मुश्किल भरा है. इन कणों को तलाश पाना सामान्य तौर पर नामुमकिन है. ऐसे में शहर के सैकड़ों डोम जाति के लोग रोज सुबह कारीगरों की दुकानों के बाहर के नाली की कीचड़ को इकट्ठा करते हैं. इसे निहारी बोला जाता है. डोम जाति के लोग कीचड़ को एक तसले में भरकर नाली के ही पानी से इसे साफ करते रहते हैं. घंटों तक कीचड़ को छाना जाता है. इसमें से मोटे कचरे को निकाल देते हैं. कड़ी मेहनत के बाद आखिर में बचे कचरे को तेजाब और पारे से गला दिया जाता है. इसके बाद कचरे से नाममात्र का सोना निकलता है, जिसे यह लोग दुकानदार को बेच देते हैं. यही इन लोगों की आमदनी का जरिया है। बताया जा रहा है कि पहले यह काम खासकर नागपुर और झांसी आदि जगहों से आए बंजारे करते थे, लेकिन एक से दो घंटे की मेहनत में दो-चार सौ रुपए की कमाई को देख इन दिनों डोम जाति के लोगों ने भी नाली से सोना तलाशने का काम शुरू कर दिया है. हमने कचरे से सोना तलाशने वाले लोगों से बात की तो पता चला कि शहर में सैकड़ों लोग यह काम करते हैं. इस काम में ज्यादातर महिलाएं ही शामिल हैं. कई महिलाएं लंबे समय से यह काम कर रही हैं. बीते करीब 45 साल से कचरे से सोना तलाशने का काम कर रहे लोगों का कहना है कि इस काम में ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो श्मशान घाट स्थित नदी से सोना तलाशते हैं।