नयी दिल्ली: 24 अप्रैल (ए)।) बिना सुनवाई के लंबे समय तक आरोपी को जेल में रखने पर आपत्ति जताते हुए उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि बिना सुनवाई के ही सजा की अनुमति नहीं दी जा सकती। इसके साथ ही न्यायालय ने मादक पदार्थ से जुड़े एक मामले में गिरफ्तार आरोपी को जमानत दे दी।
न्यायामूर्ति बी.आर. गवई और न्यायामूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता पांच साल से अधिक समय से जेल में बंद है और 2019 में दर्ज मामले में अब तक सुनवाई शुरू नहीं हुई है।
सरकारी वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि मामले में सह-आरोपी को जमानत पर रिहा किया गया था लेकिन वह अदालती कार्यवाही में पेश नहीं हो रहा है।
पीठ ने कहा कि इस अदालत ने कई मामलों में व्यवस्था दी है कि बिना सुनवाई के लंबे समय तक जेल में रखना, बिना सुनवाई के सजा के समान है जिसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।
सर्वोच्च अदालत पिछले साल मार्च में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित उस आदेश के खिलाफ आरोपी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी।
मामले में सह-आरोपी के अदालत में पेश नहीं होने की दलील पर पीठ ने कहा कि राज्य हमेशा जमानत रद्द करने के लिए कदम उठाने की खातिर स्वतंत्र है। हालांकि, याचिकाकर्ता को केवल इस आधार पर दंडित नहीं किया जा सकता कि सह-आरोपी अदालत में पेश नहीं हो रहा है।
पीठ ने याचिकाकर्ता को ग्रेटर नोएडा में दर्ज मामले में अधीनस्थ अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों पर जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया।
आरोपी को जनवरी 2019 में स्वापक औषधि और मनः प्रभावी पदार्थ अधिनियम के तहत एक मामले में गिरफ्तार किया गया था।
उच्च न्यायालय में आरोपी ने दावा किया कि उसे वहां से गिरफ्तार नहीं किया गया था, जहां से कथित तौर पर 150 किलोग्राम गांजा बरामद किया गया था।