नयी दिल्ली: तीन मार्च (ए) उच्चतम न्यायालय ने किसी सोशल मीडिया अकाउंट या उस पर उपलब्ध सामग्री को संबंधित ‘क्रिएटर’ या मूल स्रोत को सुनवाई का मौका दिए बिना ब्लॉक करने के मुद्दे से जुड़ी याचिका पर विचार करने पर सोमवार को सहमति जताई।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सूचना प्रौद्योगिकी (जनता द्वारा सूचना तक पहुंच को अवरुद्ध करने की प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय) नियम, 2009 के नियम 16 को रद्द करने के अनुरोध वाली याचिका पर केंद्र से जवाब तलब किया।पीठ ने याचिका को लेकर नोटिस जारी किया।
याचिकाकर्ता ‘सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर’ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि सूचना के “स्रोत” को कोई नोटिस नहीं दिया गया है और केवल ‘एक्स’ जैसे मंचों को ही नोटिस भेजा गया है।
जयसिंह ने कहा, “चुनौती यह नहीं है कि सरकार के पास सामग्री हटाने की शक्ति नहीं है, बल्कि यह है कि सामग्री हटाते समय उस व्यक्ति को नोटिस जारी किया जाना चाहिए, जिसने उक्त सामग्री को सार्वजनिक मंच पर डाला।”
अधिवक्ता पारस नाथ सिंह के माध्यम से दाखिल याचिका में 2009 के नियमों के कुछ प्रावधानों को चुनौती दी गई है।
इसमें कहा गया है कि नियम-8 सामग्री के स्रोत को ब्लॉकिंग अनुरोध नोटिस जारी करने को वैकल्पिक बनाता है, जिससे अधिकारियों को यह “अनियंत्रित विवेक” हासिल होता है कि वे स्रोत को नोटिस जारी करें या नहीं।
पीठ ने पहले कहा कि कोई भी पीड़ित व्यक्ति इस मुद्दे पर अदालत का रुख कर सकता है। उसने कहा कि अगर सामग्री प्रसारित करने वाला व्यक्ति पहचान योग्य है, तो उसे नोटिस जारी किया जाएगा और अगर उसकी पहचान नहीं की जा सकती है, तो मध्यस्थ को नोटिस दिया जाएगा।
जयसिंह ने कहा, “चुनौती यह है कि सामग्री के स्रोत के संबंध में प्राकृतिक न्याय के नियमों का अनुपालन नहीं किया जाता है।”
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि हमें प्रथम दृष्टया लगता है कि नियम को इस तरह से पढ़ा जाना चाहिए कि अगर कोई व्यक्ति पहचान योग्य हो, तो उसे नोटिस दिया जाना चाहिए।
जब जयसिंह ने कहा कि अदालत सोशल मीडिया से परिचित होगी, तो न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि वह किसी भी सोशल मीडिया मंच पर सक्रिय नहीं हैं।उन्होंने कहा, “मैं न तो एक्स, न ही वाई और न ही जेड पर हूं।”
पीठ ने कहा कि कोई भी पहचान योग्य व्यक्ति, जिसे नोटिस नहीं दिया गया है और जो इससे व्यथित है, वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।
याचिका में कहा गया है कि ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां वेबसाइट, एप्लीकेशन और सोशल मीडिया खातों को कोई नोटिस या सुनवाई का मौका दिए बिना ब्लॉक कर दिया गया।
इसमें कहा गया है, “सूचना तक पहुंच अवरुद्ध करने के 2009 के नियम अपने मौजूदा स्वरूप में प्रतिवादियों को नागरिकों की ओर से पोस्ट की गई ऑनलाइन सामग्री को बिना कोई औचित्य दिए तथा सामग्री के ‘क्रिएटर’ या ‘पोस्ट करने वाले व्यक्ति’ को सुनवाई का कोई अवसर दिए बिना प्रभावी रूप से ब्लॉक करने की अनुमति देते हैं।”
याचिका के मुताबिक, 2009 के नियमों में यह भी प्रावधान किया गया है कि सामग्री को ब्लॉक करने के संबंध में की गई सभी शिकायतों और अनुरोधों को गोपनीय रखा जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि कानून के इस रुख के परिणामस्वरूप नागरिक संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) और 21 के तहत अपने मौलिक अधिकारों से वंचित हो रहे हैं। इसमें कहा गया है कि नागरिकों के बोलने और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय का तत्काल हस्तक्षेप जरूरी है।
याचिका में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम, 2000 की धारा 69ए का हवाला देते हुए सामग्री के ‘क्रिएटर’ या मूल स्रोत और मध्यस्थ को सामग्री को ब्लॉग करने का नोटिस जारी करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
धारा 69ए किसी भी कंप्यूटर संसाधन के माध्यम से किसी भी सूचना तक सार्वजनिक पहुंच को अवरुद्ध करने के लिए निर्देश जारी करने की शक्ति से संबंधित है।